गुरुवार, 22 दिसंबर 2011

नेशनल आरटीआई फोरम और नागरिक अधिकार मंच का संयुक्त विरोध सभा.


आज 22 दिसंबर 2011 को सहजानंद सरस्वती आश्रमविद्यापति भवन के बगल में (तारामंडल)पटना पर नेशनल आरटीआई फोरमलखनऊ, नागरिक अधिकार मंचपटना एवं अन्य सामाजिक संगठनों द्वारा 12 बजे से बजे के मध्य विरोध प्रदर्शन कार्यक्रम किया गया. यह विरोध प्रदर्शन आरटीआई शहीद रामविलास सिंह की दिनांक 08 दिसंबर 2011 को हुई हत्या में आरोपित पुलिसकर्मियों के अभी तक उसी स्थान पर बने रहनेउनके दोष निर्धारण के सम्बन्ध में कोई भी जांच नहीं किये जाने एवं शहीद रामविलास सिंह द्वारा हत्या की बार-बार आशंका जाहिर करने के बाद भी उनके परिवार को राज्य सरकार द्वारा किसी भी प्रकार का मुआवजा नहीं दिये जाने विषय में आयोजित किया गया. 
उपस्थित सभी लोगों ने रामविलास सिंह द्वारा बिहार राज्य मानवाधिकार आयोग समेत समस्त आला अधिकारियों को अपराधियों सहित लखीसराय थाना प्रभारी संतोष कुमार सिंह द्वारा अपने प्राणों को भय बताए जाने के बाद हुई उनकी हत्या होने और आज उनके द्वारा वहीँ नियुक्त हो कर इस हत्या का अनुसन्धान करने को अत्यंत आपत्तिजनक एवं प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के सर्वथा विरुद्ध बताया. 
नेशनल आरटीआई फोरमलखनऊ की कन्वेनर डॉ नूतन ठाकुर ने बताया कि यद्यपि आज सूचना का अधिकार अधिनियम पारित हो गया है लेकिन लगभग सभी राज्यों में इसका सही ढंग से अनुपालन नहीं हो रहा है. उन्होंने कहा कि वे समझती थीं कि सबसे खराब दशा उत्तर प्रदेश की है लेकिन रामविलास सिंह और इससे पहले बेगुसराय के शशिधर मिश्र की हत्या यह बताती है कि बिहार की स्थिति भी कोई बहुत अच्छी नहीं है. उन्होंने कहा कि नेशनल आरटीआई फोरम की स्थापना ही उन्होंने और उनके पति यूपी के आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर ने आरटीआई कार्यकर्ताओं की सुरक्षा के दृष्टिगत किया था. 
नागरिक अधिकार मंच के अध्यक्ष शिव प्रकाश राय ने कहा कि चूँकि स्वर्गीय रामविलास सिंह ने राज्य सरकार को बार-बार अपने प्राणों का भय बताया और सरकार उनकी हिफाजत करने में असफल रही अतः नैतिकता और क़ानून यह अपेक्षा रखती है कि राज्य सरकार अपनी विफलता के लिए उनके परिवार को समुचित मुआवजा दे.
सामाजिक कार्यकर्ता रजनीश कुमार ने कहा कि ह्त्या की उच्चस्तरीय जाँच  कराई जाए और जिन पुलिस पदाधिकारियों पर पूर्व में ही उन्होंने संदेह व्यक्त किया है उनसे केस का अनुसंधान और पर्यवेक्षण नहीं करा कर इस मुकदमे का अनुसन्धान तत्काल राज्य सीआईडी अथवा सीबीआई को सुपुर्द किया जाए. सामाजिक कार्यकर्ता मनोज कुमार ने संबंधित थाना प्रभारी को वहाँ से तुरंत प्रभाव से स्थानांतरित करने और उनपर कर्तव्य में लापरवाही बरतने हेतु विभागीय कार्रवाई करने की मांग की. 
इन सभी लोगों ने बिहार के राज्यपाल को अपनी इन मांगो के साथ ज्ञापन सौंपा.


Hindustan Times, Patna, 22.12.2011, Main Page


सोमवार, 19 दिसंबर 2011

आर.टी.आई.एक्टिविस्ट श्री रामविलास सिंह की निर्मम ह्त्या के विरोध में धरना .




लखीसराय जिले के जुझारू आर.टी.आई. एक्टिविस्ट श्री रामविलास सिंह की अपराधियों द्वारा दिन दहाड़े ह्त्या की गयी. यह सर्वविदित है कि उन्होंने बिहार राज्य मानवाधिकार आयोग समेत समस्त आला अधिकारियों को संभावित खतरे से आगाह किया था तथा ह्त्या में शामिल अपराधियों के नाम समेत बताया था कि वे मेरी जान ले सकते हैं. इतना ही नहीं उन्होंने पुलिस पदाधिकारियों द्वारा कोई कार्रवाई नहीं किए जाने पर सूचना के अधिकार के तहत उन पर किए जा रहे कार्रवाई का ब्योरा भी माँगा था तथा भ्रष्ट डीएसपी के संपत्ति का ब्योरा भी माँगा था. बावजूद इसके संवेदनहीन पदाधिकारियों द्वारा हत्याभियुक्तों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं किया जाना पुलिस पदाधिकारियों की ह्त्या के साजिश में शामिल होने के कयास को पुख्ता करती है. इस ह्त्या के खिलाफ नागरिक अधिकार मंच द्वारा पटना के आर.ब्लॉक. चौराहा पर दिनांक १९/१२/२०११ दिन सोमवार को ११ बजे दिन से ५ बजे शाम तक धरना का आयोजन किया गया. इस धरने की प्रमुख मांगे हैं-

१.      इस ह्त्या की उच्चस्तरीय जाँच  कराई जाए, जिन पुलिस पदाधिकारियों पर पूर्व में ही उन्होंने संदेह व्यक्त किया है तथा जिनके इस ह्त्या के साजिश में शामिल होने की संभावना है, उनसे केस का अनुसंधान और पर्यवेक्षण कराना न्याय के सिद्धांत के विरुद्ध है. संबंधित थानेदार एवं डीएसपी की अपराधियों के साथ सांठ-गाँठ एवं उनकी संलिप्तता की जाँच की जाए.

२.      संबंधित थाना प्रभारी और डीएसपी को वहाँ से तुरंत प्रभाव से स्थानांतरित किया जाए एवं उनपर कर्तव्य में लापरवाही बरतने हेतु विभागीय कार्रवाई की जाए. विदित हो कि इन्होने ह्त्या में शामिल अभियुक्तों के कुर्की-जब्ती हेतु न्यायालय के आदेश पर कोई कार्रवाई न कर झूठी कागजी-खाना-पूर्ती की थी.

३.      मृतक के आश्रितों को पच्चीस लाख रूपए बतौर मुआवजा दिए जाएँ.

४.      मृतक के परिजनों को संलिप्त अपराधियों से आज भी जान का खतरा बना हुआ है, उनकी सुरक्षा हेतु उचित व्यवस्था की जाए.

५.      समाज में भ्रष्टाचार तथा अपराध के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे समाजसेवियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु विशेष प्रावधान किए जाएँ.

शुक्रवार, 18 नवंबर 2011

हर घर से हो शंखनाद

नागरिक अधिकार मंच की पदयात्रा औरंगाबाद पहुंची
भ्रष्टाचार आज देश का सबसे ज्वलंत मुद्दा है. इसकी तपिश से आम लोग जल रहे हैं. सभी अपने-अपने तरीके से इसके खिलाफ लड़ाई की बात कर रहे हैं. पार्टियां भी एकजुट हो रही हैं. कोई रथयात्रा निकाल रही है, तो कोई पदयात्रा कर लोगों को इससे लड़ने के लिए जगरूक कर रही है.
बुधवार को जिले में भी भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए कई पार्टियों द्वारा कार्यक्रम किये गये. अभाविप ने जनजागरण यात्रा रथ निकाला, भाकपा(माले ) ने नुक्कड़ सभा की, तो वहीं नागरिक अधिकार मंच ने पदयात्रा निकाल कर लोगों को इससे लड़ाई तेज करने का आह्वान किया.
औरंगाबाद (सदर) : देश में व्याप्त भ्रष्टाचार व मानवाधिकार हनन के खिलाफ युवा नेता भरत सिंह नागरिक अधिकार मंच के तहत पदयात्रा शुरू की, जो बुधवार को शहर पहुंची. प्रदेश अध्यक्ष शिव प्रकाश राय ने बताया कि भ्रष्टाचार के खिलाफ यह पदयात्रा बिहार के बक्सर जिले से प्रारंभ हुई थी, जो 14वें दिन औरंगाबाद पहुंची.
यहां रमेश चौक पर एक नुक्कड़ सभा की गयी. इसमें वक्ताओं ने कहा कि देश और राज्य का विकास छात्रों, नौजवानों, किसानों और मजदूरों के आपसी सहयोग के बिना संभव नहीं है.
यह पदयात्रा संपूर्ण बिहारवासियों के अधिकारों एवं सद्भावना के लिए की जा रही है, ताकि सभी अपने अधिकारों को समझ कर जगरूक हो सकें. जाति, धर्म, मजहब से ऊपर उठ कर भ्रष्टाचार का विरोध कर नये बिहार के निर्माण के लिए संकल्पित हो.
आपसी भाईचारे के साथ भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध शंखनाद करें. हरेक घर में लोग बेरोजगार व लाचार हैं. इसके लिए सरकार के पास कोई योजनाएं नहीं है. पदयात्रा में गोपाल सिंह, विद्यानंद सिंह, जितेंद्र सिंह, मार्कडेय त्रिवेद्वी, विमलेश कुमार सिंह शामिल थे.

गुरुवार, 17 नवंबर 2011

भगवान अब शैतान बन गए हैं !!


डॉक्टर को धरती पर भगवान का अवतार समझा जाता है| ईश्वर-प्रदत्त जीवन को बचाने का काम इन्हीं के जिम्मे है| भगवान की दुआ काम करे ना करे डॉक्टर की दवा असर दिखाती है और प्रतिदिन इनके बदौलत लाखों जीवन जीने लायक बनते हैं| पर, धरती के इस भगवान में शैतान का रूप दिखता है तो घोर निराशा होती है|
ऐसी ही एक घटना का गवाह और शिकार मैं स्वयं बना| विगत 17 अक्टूबर को मेरे बेटे अनुराग कश्यप की तबियत खराब हो गयी थी, उसे काफी तेज बुखार था| पटना के प्रसिद्द शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ० उत्पल कान्त सिंह के पास परामर्श हेतु दिन के तीन बजे ही उनके यहाँ प्रचलित परम्परा के अनुसार दो सौ रूपए परामर्श फी जमा कर नंबर लगा दिया गया था| उनके अटेंडेंट के द्वारा शाम सात बजे आने को कहा गया और मैं अपने बीमार बेटे के साथ समय पर उनके क्लिनिक में पहुँच भी गया| डॉ० साहब भी समय से रोगी देखना शुरू कर चुके थे, रोगियों की संख्या काफी अधिक थी| इतनी अधिक की रात्रि के पौने बारह बजने के बावजूद भी लगभग पचास रोगी लाइन में लगे थे| इसी बीच डॉ० साहब बिना किसी को कुछ सूचित किए चुपके से अपनी गाड़ी में बैठे और अपने घर को चले गए| सभी लोग अवाक् और हताश थे और काफी आक्रोशित भी, पर लाचार थे| कुछ बच्चे तो काफी गंभीर अवस्था में थे और ऊपर से आलम यह कि अब मध्य रात्रि को किसी दूसरे डॉ० से इलाज करा पाना भी लगभग असंभव ही था| “इस डॉ० की यह सनक तो प्रतिदिन लोगों को झेलना पड़ता है”- ऐसा मैं नहीं बल्कि उन्हीं के अनुकर्मी कह रहे थे| मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ| दूसरे दिन सुबह मैंने उसका इलाज दूसरे डॉ० से कराया और अब वह बिलकुल स्वस्थ है| मैंने इस बाबत डॉ० उत्पल कान्त जी के ईमेल (utpalkant.singh@yahoo.co.in) पर लिखित विरोध दर्ज कराया तथा उन्हें उतनी ही संख्या में रोगियों का नंबर लगाने की सलाह दी, जितने को वे देख पायें, ताकि शेष रोगी दूसरे डॉ० से इलाज करा सकें| मुझे नहीं पता वे इस पर अमल करेंगे या बच्चों को अपनी सनक का शिकार बनाते रहेंगे|
दूसरी घटना का जिक्र करना चाहूँगा, जिसे औरंगाबाद के श्रीकृष्णनगर मोहल्ले में रहनेवाले मनीष कुमार एवं अरुन्जय कुमार गौतम ने बताया| इसमें औरंगाबाद सदर अस्पताल में पदस्थापित डॉ० तपेश्वर प्रसाद ने तो अमानवीयता की सारी हदों को पीछे छोड़ दिया| ओबरा प्रखंड के खरांटी में ब्याही एक लडकी को ससुराल वालों ने मिट्टी तेल छिड़ककर जला दिया (लड़की पक्ष के अनुसार), लाश दो दिन तक घर में ही पड़ी रही| जब लड़की के मायके वालों ने पुलिस को सूचित किया तो लाश सदर अस्पताल में पोस्टमार्टम हेतु भेजा गया| वहाँ, लाश के पोस्टमार्टम रिपोर्ट लिखने हेतु लड़की के परिजन से डॉ० साहब ने बीस हजार रूपए माँगनी शुरू कर दी| क्या हालत होगी उस बाप की जिसकी बेटी जलाई जा चुकी है और उसका रिपोर्ट देने हेतु डॉक्टर उससे पैसे की मांग करे !
इसी तरह पीएमसीएच के प्रसूति-विभाग के वार्ड संख्या-जी में भर्ती मुजफ्फरपुर के बी०पी०अखिलेश जी की पत्नी का ऑपरेशन डॉक्टरों की लापरवाही के कारण दो-दो बार करना पड़ा| बी०पी०अखिलेश के अनुसार इस वार्ड में भर्ती सभी मरीजों को एक ही दवा दी गयी, जो सबों को रिएक्शन किया और सभी को कै-दस्त होने लगा| आनन-फानन में परिजनों द्वारा इसकी सूचना वार्ड-प्रभारी और अधीक्षक को भी दी गयी, पर किसी ने इसका कोई रेस्पोंस नहीं लिया| बाद में इसकी शिकायत स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव से भी की गयी|
नागरिक अधिकार मंच के अध्यक्ष श्री शिवप्रकाश राय ने सूचना के अधिकार के तहत राज्य के मंत्रियों के इलाज पर खर्च होनेवाले रूपए का ब्योरा निकाला है| इसमें एक-एक वर्ष में कई मंत्रियों ने दस-दस लाख रूपए तक खर्च दिखाया है, जबकि कभी उनके गंभीर रूप से बीमार होने की खबर नहीं मिली| दूसरी ओर न्यूमोनिया से पीड़ित बच्चे दो सौ पचास रूपए के औक्सीजन के अभाव में प्रत्येक दिन काफी संख्या में मर रहे हैं|
क्या इससे ऐसा नहीं लगता कि भगवान अब शैतान बन गए हैं ?

भ्रष्टाचार के खिलाफ शहर में पदयात्रा


औरंगाबाद, कार्यालय संवाददाता :

भ्रष्टाचार एवं मानवाधिकार हनन के खिलाफ नागरिक अधिकार मंच के बैनर तले निकली पदयात्रा बुधवार को औरंगाबाद पहुंची। जसोइया स्थित महाराणा प्रताप की मूर्ति पर माल्यार्पण कर यात्रा की शुरुआत की गई। भरत सिंह के नेतृत्व में निकली पदयात्रा करमा मोड़, समाहरणालय, रमेश चौक बाजार होते हुए गुजरी। यात्रा का जिक्र करते हुए भरत ने कहा कि उद्देश्य लोगों को जगाना है। बिहार की क्रांतिकारी जनता को भ्रष्टाचार के खिलाफ एकजुट करना, विकास राशि का हिसाब मांगने के लिए जनता को संगठित करना, मानवाधिकार हनन के खिलाफ जनमत तैयार करना एवं सूचना के अधिकार, शिक्षा के अधिकार एवं सेवा के अधिकार के प्रति लोगों को जागरूक करना है। बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता दिए जाने की मांग करते हुए कहा कि मैट्रिक पास को एक हजार, इंटर को पन्द्रह सौ, बीए को दो हजार, एमए को चार हजार, पीएचईडी को पांच हजार एवं व्यवसायिक शिक्षा प्राप्त करने वालों को दो हजार रुपए दी जाए। भ्रष्टाचार का जिक्र करते हुए कहा कि यह रोग भ्रष्टाचारियों के खून में हिमोग्लोबिन की तरह घूस गया है। सांसद एवं विधायक अपनी सुविधा के लिए एक हो जाते हैं परंतु आम जनता के सवाल एवं भ्रष्टाचार मिटाने के संकल्प पर कभी एक नहीं हुए। पदयात्रा में मंच के अध्यक्ष शिवप्रकाश राय, किसान नेता भाई गोपाल, भोजपुर के जिलाध्यक्ष विद्यानंद सिंह, जितेन्द्र सिंह, मार्कण्डेय त्रिवेदी, नागेन्द्र सिंह, अलखदेव पासवान शामिल थे।

गुरुवार, 13 अक्तूबर 2011

बिहार में सूचना का अधिकार, बिना धार का हथियार.

माननीय मुख्यमंत्री महोदय ने चुनाव पूर्व बिहार में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को अपना प्रमुख मुद्दा बताया था| उन्होंने वादा किया था कि हम जनता की आँखों से देखेंगे और उन्हीं के कानों से सुनेंगे भी| जनता की आँखें तो तथ्यात्मक सूचनाओं के बिना मोतियाबिंद के मरीज की आँखें बन जाती हैं और कान तो सुनेंगे वही जो उन्हें सुनाया जाएगा| पारदर्शिता के क्षेत्र में काम करने के लिए अखबारों में बिहार सरकार की काफी तारीफ़ हो रही है और व्यवस्था को पारदर्शी बनाने के लिए नित नई-नई व्यवस्थाएं की जा रही है| सूचना का अधिकार क़ानून स्वतन्त्र भारत में एक क्रांतिकारी बदलाव के रूप में देखा गया था| लोकहित में इसका काफी प्रयोग किया जाने लगा, जिससे सरकारी तंत्र और भ्रष्ट अधिकारियों में खौफ पैदा हुआ| बिहार सरकार ने प्रशासनिक पारदर्शिता के क्षेत्र में विशिष्ट पहल करते हुए जानकारी सुविधा केन्द्र की स्थापना की, जिसमें कॉल सेंटर तथा इंटरनेट के माध्यम से सूचना हेतु आवेदन देने की व्यवस्था की गयी| देश में पहली बार जब बिहार सरकार ने आईसीटी (ICT-Information and Communications Technology) का प्रयोग करते हुए सूचना अधिकार अधिनियम को व्यापक स्तर पर प्रसारित करने एवं आम लोगों की पहुँच तक लाने का काम किया तो बिहार सरकार की इस पहल को भारत सरकार द्वारा ई-गवर्नेंस का उत्कृष्ट उदाहरण मानते हुए पुरस्कृत किया गया था| समय बीतने के साथ भ्रष्ट गठजोड़ ने इसका तोड़ खोजना शुरू किया और आज इस क़ानून को ठेंगा दिखाया जाने लगा| आज बिहार सरकार के सारे दफ्तरों में सूचना देने के बजाए सूचना छुपाने हेतु भरपूर जोर-आजमाईश हो रही है|
जानकारी सुविधा केन्द्र के बारे में तो बस यही कहा जा सकता है कि यह व्यवस्था संभवतः बिहार सरकार ने केवल पुरस्कार पाने के लिए ही बनाई थी| ऑनलाइन दर्ज आवेदनों के बारे में मेरा व्यक्तिगत अनुभव यह कहता है कि उनका कोई रेस्पोंस नहीं लिया जाता| अगर व्यवस्था गूंगी-बहरी हो तो क़ानून में दर्ज प्रथम अपील, द्वितीय अपील बस कागज़ पर लिखे क़ानून ही रह जाते हैं, वे जमीन पर पाँव ही नहीं रखते| इतनी शानदार व्यवस्था का व्यवस्थापकों ने भ्रूण-ह्त्या कर रखी है|
सूचना आयोग की लापरवाही का आलम यह है वाद संख्या ४६९६३/१०-११ के लोक सूचना अधिकारी प्रखंड विकास पदाधिकारी, दाउदनगर है| पर, सूचना आयोग से नोटिस प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी, दाउदनगर को प्रेषित की जाती है| हद तो तब, जब प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी एवं आवेदक दोनों द्वारा बार-बार यह बताया जाता है कि इसमें लोक सूचना अधिकारी प्रखंड विकास पदाधिकारी, दाउदनगर हैं तब भी आयोग के वेबसाईट पर इसे सुधारा नहीं जाता है| इस लेख के लिखे जाने तक आयोग के आधिकारिक वेबसाईट पर इसमें सुधार नहीं किया गया है और पूरा विश्वास है कि इस लेख के छपने के बाद भी आप इसे यथावत देख सकते है|
सूचना के अधिकार पर काम कर रहे बिहार के चर्चित कार्यकर्ता एवं नागरिक अधिकार मंच के अध्यक्ष श्री शिवप्रकाश राय ने जब सूचना आयोग से यह जाननी चाही कि अब तक आयोग ने सूचना के अधिकार अधिनियम की धारा २०(१) और २०(२) अंतर्गत कितने लोक सूचना पदाधिकारियों पर अर्थ दंड लगाए, कितने पर विभागीय कार्रवाई की अनुशंसा की, कितनों से अर्थदंड की वसूली हुई और कितनों पर विभागीय कार्रवाई की गयी| तो सूचना आयोग के लोक सूचना पदाधिकारी ने इन सूचनाओं के उपलब्ध नहीं रहने की सूचना दी| क्या सूचना आयोग के पास भी अपने कार्यों के बारे में ही सूचना नहीं है ?
असली बात यह है कि सूचना आयोग में द्वितीय अपील की सुनवाई के दौरान दिखावे को तो लोक सूचना पदाधिकारियों पर अधिनियम के विरुद्ध आचरण करने हेतु जुर्माना लगाया जाता है, जो समाचार पत्रों की सुर्खियाँ बनती हैं| पर, या तो उन पर लगाए जुर्माने को वसूलने हेतु कोई कार्रवाई नहीं होती अथवा अवैधानिक तरीके से उनका जुर्माना ही माफ कर दिया जाता है| सूचना के अधिकार अधिनियम में कहीं भी लोक सूचना अधिकारी पर लगे अर्थदंड को माफ करने का प्रावधान नहीं है| उदाहरण के तौर पर वाद संख्या ३२२८६/०९-१० का उल्लेख करना मुनासिब होगा| दिनांक ०५|०४|२०११ को इस मामले की सुनवाई करते हुए राज्य सूचना आयुक्त श्री पी० एन० नारायणन ने लोक सूचना अधिकारी सह पंचायत सचिव तथा पंचायत रोजगार सेवक, ग्राम पंचायत- राजपुर (बक्सर) पर २५००० रूपए का अर्थदंड लगाया तथा दिनांक ३०|०६|२०११ तक आवेदक को सूचना दी जाने, दंड राशि जमा किए जाने तथा धारा २०(२) अंतर्गत आयोग में स्पष्टीकरण देने का आदेश दिया| लेकिन अगली तिथि दिनांक ०२|०९|२०११ को मुख्य सूचना आयुक्त श्री अशोक कुमार चौधरी ने जुर्माने एवं स्पष्टीकरण की बात तो छोड़ ही दें, लोक सूचना अधिकारी को सूचना आयोग में उपस्थिति से भी छूट दे दी| ऐसे फैसले दाल में कुछ काला होने का भान कराते हैं, नागरिक अधिकार मंच के अध्यक्ष श्री शिव प्रकाश राय तो कहते हैं कि पूरी दाल ही काली है|
ऐसे भी मामले हैं जिनमें सूचना आयोग ने लोक सूचना पदाधिकारी को सूचना देने का आदेश दिया, तो वे सूचना आयोग के आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय चले गए| श्री शिव प्रकाश राय द्वारा प्राप्त की गयी सूचना के अनुसार वर्ष २००८ से ०५|०८|२०११ तक ऐसे कुल १०० मामले हैं| इन मामलों में सूचना आयोग को अब तक दस लाख रूपए से अधिक की राशि वकीलों को कानूनी सलाह लेने के बदले में देना पड़ा है, लोक सूचना पदाधिकारियों द्वारा व्यय की गयी राशि का विवरण उपलब्ध नहीं है| पर यह निश्चित रूप से राज्य सूचना आयोग द्वारा व्यय की गयी राशि से कई गुनी अधिक होगी| दोनों पक्षों द्वारा व्यय की गयी राशि बिहार सरकार के राजकोष से खर्च हो रहे हैं| कितनी अजीब बात है कि बिहार सरकार के राजकोष की राशि का अपव्यय सरकार के संस्थाओं द्वारा ही परस्पर विरोध में किया जा रहा है- एक सूचना दिलाने के नाम पर दूसरा सूचना छुपाने के लिए| क्या यह प्रदेश की निरीह जनता के साथ भद्दा मजाक नहीं है

मंगलवार, 27 सितंबर 2011

न्याय दीजिए नहीं तो करेंगे आत्महत्या

रफीगंज (औरंगाबाद), निज प्रतिनिधि : हसपुरा के भतन बिगहा की पुनरावृति प्रखंड के दुगुल पंचायत के शाहगंज गांव में हो सकती है। इंदिरा आवास पीड़ित परिवार रफीक अहमद ने डीएम के जनता दरबार में आवेदन देते हुए न्याय की गुहार लगाई है। न्याय नहीं मिलने पर आत्महत्या करने की धमकी दी है। रफीक ने बताया कि वित्तीय वर्ष 2010-11 में हमें इंदिरा आवास मिला। रफीगंज कोआपरेटिव बैंक में खाता खोला गया और पैसे की निकासी कर ली गई। 7 सितम्बर को इंदिरा आवास जांच के क्रम में अधिकारी शाहगंज गांव पहुंचे। रफीक ने इंदिरा आवास के लिए गुहार लगाई तो अधिकारियों ने बताया कि उसे इंदिरा आवास आवंटित हो चुका है। अधिकारियों ने इंदिरा आवास के पैसे से आवास बनाने का आदेश दिया। कहा कि अगर ऐसा नहीं करेंगे तो प्राथमिकी दर्ज की जाएगी। रफीक ने डीएम ने जनता दरबार में आवेदन दिया है जिसमें पूर्व उपमुखिया शमीम आलम एवं बैंक के अधिकारियों पर पैसा हड़पने का आरोप लगाया है। डीएम ने मामले में बीडीओ को जांच कर कार्रवाई करने के आदेश दिए हैं।

शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

लोकतंत्र में जनता मालिक सरकारी लोग सेवक : आभा

सूचना का अधिकार ग्राम स्वराज विषय पर एक सेमिनार आयोजित

समस्तीपुर, काप्र : नागरिक अधिकार मंच के तत्वावधान में सोमवार को सूचना का अधिकार ग्राम स्वराज विषय पर एक सेमिनार का आयोजन अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के सभा भवन में किया गया। इसे संबोधित करते हुए सद्भावना बिहार के अध्यक्ष आभा कुमार ने कहा कि जबतक प्रत्येक नागरिक सूचना के अधिकार को नहीं जानेंगे तब तक ग्राम स्वराज का सपना पूरा नहीं होगा। मुख्य वक्ता के रूप में मंच के राज्य अध्यक्ष शिव प्रकाश राय ने उपरोक्त विषय पर गंभीरता से प्रकाश डालते हुए कहा कि किसी भी लोकतंत्र में जनता ही मालिक होता है, सरकार और उसमें बैठे लोग जनता के सेवक हैं। इसमें मालिक का यह हक है कि उसके क्षेत्र में क्या काम हो रहा है सेवक उसे जानकारी देता रहे। सेमिनार को मो. इमरान, ए हादी, मो. ऐनूल हक, दिनेश कुमार, जयशंकर ठाकुर, पूनम देवी, उपेन्द्र राय, ठाकुर विक्रम सिंह, रघुनाथ राय आदि ने संबोधित किया। जबकि पूर्व में वैशाली के रंजीत पंडित, बीपी अखिलेश, हेमनारायण विश्वकर्मा आदि ने संबोधित किया। अध्यक्षता सुरेन्द्र चौधरी ने की। सेमिनार के समापन के पूर्व नागरिक अधिकार मंच जिला इकाई का गठन भी किया गया। इसमें ए हादी सचिव, ठाकुर विक्रम सिंह अध्यक्ष, एनूल हक संरक्षक, इमरान मीडिया प्रभारी, जयशंकर ठाकुर उपाध्यक्ष, रमेश राय संयुक्त सचिव, सुरेन्द्र राय, पूनम देवी, प्रमोद कुमार पप्पू, मो.अय्यूब, नंदकिशोर राय, मो. गयासुद्दीन, असकार अली आदि सदस्य मनोनीत किए गए।

लोगों की जागरूकता से मिलेगा अधिकार

आरा : विधान परिषद के सचेतक नीरज कुमार ने कहा कि राजनीतिक परिवर्तनों से भ्रष्टाचार दूर नहीं हो सकता. आज के दौर में लोकतंत्र अग्नि परीक्षा के दौर से गुजर रहा है. ऐसे में अब यह जरी हो गया है कि आम लोग अपने हक व अधिकारों के प्रति जागरूक होकर संघर्ष को तेज करें. वे शनिवार को नागरी प्रचारिणी सभागार में सूचना का अधिकार, ग्राम स्वराज विषय पर आयोजित सेमिनार के उद्घाटन करने के बाद बोल रहे थे.

सेमिनार नागरिक अधिकार मंच के तत्वावधान में आयोजित किया गया था. श्री कुमार ने कहा कि आज लोकतंत्र संक्रमण के दौर से गुजर रहा है. ऐसे में लोगों को सूचना के अधिकार को हथियार बनाकर अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए. जब तक आम लोग जागक नहीं होंगे, उन्हें उनका अधिकार नहीं मिल सकता.

नागरिक मंच के प्रदेश अध्यक्ष शिव प्रकश राय ने सूचना के अधिकार व ग्राम स्वराज पर प्रकाश डालते हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष को तेज करने हेतु एकजुट होने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि आज लोकतंत्र दो खंडों मे बंट गया है. तंत्र लोक पर हावी है. लोक का मुखौटा पहन कर नौकरशाही शोषण व भ्रष्टाचार में लिप्त है.

शिक्षाविद् कन्हैया सिंह ने कहा कि बड़े नेता व अधिकारी गरीब के बच्चों को सरकारी विद्यालयों में भेजने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, लेकिन वे अपने बच्चों को प्राइवेट विद्यालयों में भेजते हैं. सेमिनार में अग्रेनंद चौधरी, प्रो विश्वनाथ चौधरी, जगनारायण सिंह, देवेंद्र प्रसाद, विद्यानंद सिंह, दयानिधि, विजय यादव, रामाशंकर पासवान, विमलेश पांडेय ने विचार रखा.

अध्यक्षता कार्यकारिणी के प्रदेश संयोजक भरत सिंह ने की. सेमिनार के समापन पर मंच के प्रदेश अध्यक्ष ने विद्यानंद सिंह को भोजपुर और रणजीत सिंह उर्फ डब्बू को रोहतास जिले का अध्यक्ष मनोनीत किया गया.

शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

आरोपों के घेरे में 300 इंजीनियर

जिनके कंधों पर निर्माण और विकास के काम को बोझ है उनके दामन पर दाग भी कम नहीं हैं। लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग और भवन निर्माण विभाग के करीब 300 अभियंता आरोपों के घेरे में हैं।

कुछ आरोप मामूली किस्म के हैं तो कई गंभीर हैं। कुछ में जवाब मांगकर विभाग सो गया। मगर बड़ी संख्या में ऐसे मामले हैं जिसमें जांच पूरी नहीं हुई, पूरी हुई तो 'समीक्षाधीन' है। समीक्षाधीन के अपने-अपने निहितार्थ हैं। ठेकेदार को बेजा फायदा दिलवाना, बिना निर्धारित प्रक्रिया के टेंडर आदेश करना, निर्माण में गड़बड़ी से लेकर बाहरी लोगों से फाइलों पर टिप्पणी लिखवाने तक के आरोप हैं। मुख्यमंत्री की विश्वास यात्रा के दौरान गायब रहने वाले मुजफ्फरपुर के मुख्य अभियंता और कार्यपालक अभियंता से स्पष्टीकरण मंगायी गयी, जांच पदाधिकारी के मंतव्य की प्रतीक्षा की जा रही है।

तत्कालीन विभागीय मंत्री अश्रि्वनी कुमार चौबे की ग्राम गौरव यात्रा के प्रति उदासीनता दिखाने वाले सीतामढ़ी के कनीय अभियंता के खिलाफ विभागीय कार्यवाही प्रारंभ कर दी गयी। सूचना के अधिकार कानून के तहत शिवप्रकाश राय द्वारा मांगी गयी सूचना पर ये तथ्य उभर कर सामने आये हैं।

जो स्थिति है ..

* अरुण कुमार श्रीवास्तव तत्कालीन अधीक्षण अभियंता पीएचईडी अंचल छपरा, मीरगंज जलापूर्ति योजना में प्रावधानों के विरुद्ध प्राक्कलित राशि में 61.67 फीसदी वृद्धि का आरोप। पथ निर्माण विभाग का तकनीकी मंतव्य प्राप्त। निर्णय के लिए संचिका उच्च स्तर पर विचाराधीन।

* नरसिंह पासवान अधीक्षण अभियंता लोक स्वास्थ्य यांत्रिक अंचल मुजफ्फरपुर। बाहरी व्यक्ति से संचिका पर टिप्पणी दिलवाने का आरोप। संचिका उच्च स्तर पर विचाराधीन।

* जयशंकर चौधरी तत्कालीन सहायक अभियंता लोक स्वास्थ्य प्रमंडल मधुबनी। रहिका एवं घोघरडीहा जलापूर्ति योजना में संवेदक से 10 फीसदी राशि रिश्वत मांगने का आरोप। स्पष्टीकरण प्राप्त मामला उच्च स्तर पर समीक्षाधीन।

* अरुण कुमार श्रीवास्तव तत्कालीन मुख्य अभियंता मुजफ्फरपुर। लोक स्वास्थ्य प्रमंडल बेगूसराय में अक्टूबर 2008 को निविदा निष्पादन में अनियमितता का आरोप। लोक स्वास्थ्य प्रमंडल बेगूसराय से निविदा से संबंधित अभिलेख प्राप्त। उच्च स्तर पर जांच के लिए संचिका उपस्थापित।

* नवीन कुमार परमार, तत्कालीन कार्यपालक अभियंता लोक स्वास्थ्य प्रमंडल सहरसा। 1998-99 में आवंटन से अधिक व्यय करने, नलकूपों का निर्माण अधूरा छोड़ देने, निधि का विचलन करने तथा सामग्री खरीद में निर्धारित मापदंड का उल्लंघन करने का आरोप। कैडर विभाजन के कारण झारखंड चले गये। अक्टूबर 2006 को प्रपत्र 'क' में आरोप पत्र गठित कर भेजा गया है। की गयी कार्रवाई की सूचना अप्राप्त।

* .. सचिवालय भवनों की साफ-सफाई एवं रखरखाव की निविदा में अनियमितता का आरोप। मार्च 2008 में मुख्य अभियंता पटना प्रक्षेत्र से प्रतिवेदन की मांग। कई स्मारपत्र के बाद भी अप्राप्त।

* लाल बहादुर सिंह तत्कालीन अधीक्षण अभियंता आरा। निविदा निष्पादन में अनियमितता का आरोप। जुलाई 2009 में जांच प्रतिवेदन लोकायुक्त कार्यालय को उपलब्ध करा दिया गया। फलाफल अप्राप्त।

* बीरेन्द्र कुमार तत्कालीन अधीक्षण अभियंता लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण अंचल मुंगेर। स्थानांतरण-पदस्थापन और संवेदको के बीच कार्यादेन जारी करने में अनियमितता बरतने तथा पटना जंक्शन से चोरी गये एनएससी का उपयोग करने का आरोप। जांच प्रतिवेदन प्राप्त। संचिका उच्च स्तर पर समीक्षाधीन।

* विजय कुमार सिन्हा तत्कालीन अधीक्षण अभियंता मुजफ्फरपुर । संवेदक को 57.17 लाख का अदेय सहायता पहुंचाने का आरोप। प्रपत्र क में आरोप गति कर विभागीय कार्यवाही चलाने का प्रस्ताव 7 फरवरी 11 को उपस्थापित।

* श्यामा प्रसाद चौधरी तत्कालीन अधीक्षण अभियंता छपरा। बिना निविदा किये एवं बिना क्रय समिति की अनुशंसा के क्रयादेश जारी करने एवं परिसदन के वृक्षों की अवैध कटाई का आरोप। दिसम्बर 2006 में विभागीय कार्यवाही प्रारंभ। अंतिम निर्णय के लिए मामला समीक्षाधीन।

* मुख्य अभियंता मुजफ्फरपुर बालेश्वर प्रसाद सिंह एवं कार्यपालक अभियंता मुजफ्फरपुर नागेश्वर शर्मा। मुख्यमंत्री की विश्वास यात्रा के दौरान अनुपस्थित रहे। मीनापुर प्रखंड के पानापुर ग्रामीण जलापूर्ति योजना के अपूर्ण-त्रुटिपूर्ण रहने का आरोप। खाद्य एवं उपभोक्ता के प्रधान सचिव त्रिपुरारी शरण से जांच प्रतिवेदन प्राप्त किया गया। दोनों अधिकारियों का स्पष्टीकरण प्राप्त किया गया। स्पष्टीकरण पर जांच पदाधिकारी के मंतव्य की प्रतीक्षा की जा रही है।

* कनीय अभियंता लोक स्वास्थ्य प्रमंडल सीतामढ़ी, अभी निलंबन में। ग्राम गौरव यात्रा में रुचि नहीं लेने का आरोप। अगस्त 10 में ही विभागीय कार्यवाही प्रारंभ की गयी। डीपी सिंह अधीक्षण अभियंता लोक स्वास्थ्य पटना को जांच संचालन पदाधिकारी नियुक्त किया गया। जांच प्रतिवेदन अप्राप्त।

सोमवार, 25 जुलाई 2011

नागरिक अधिकार मंच द्वारा आयोजित धरना के संबंध में प्रेस विज्ञप्ति

PRESS RELEASE



विषय- नागरिक अधिकार मंच द्वारा एकदिवसीय धरना का आयोजन

तिथि- दिनांक 25/07/2011 दिन सोमवार.

धरनास्थल- आर ब्लाक चौराहा, पटना

शामिल प्रमुख व्यक्ति- नागरिक मंच के अध्यक्ष श्री शिवप्रकाश राय, डॉ* एस.एन.उपाध्याय, पुरंदर सावर्न्य, भोजपुर से भरत सिंह, गोपालगंज से सुरेशचंद्र त्यागी, मुजफ्फरपुर से बीपी अखिलेश, समस्तीपुर से ऐनुल अंसारी, किशोर कुणाल, पुर्नेंदु जी, अजीत चौधरी, हेमंत जी, रणजीत पंडित,बेगुसराय से रंजन जी,आदरणीय अशोक मोती जी.

उद्देश्य- इस धरने को निम्नलिखित मांगों को लक्षित कर आयोजित किया गया -

(1.) राज्य सूचना आयोग में खाली पड़े सूचना आयुक्त के पदों को उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों से शीघ्र भरा जाए.

(2.) विगत एक वर्ष में राज्य सूचना आयोग द्वारा किए गए फैसले की जाँच उच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीश से कराई जाए, खासकर ऐसे सभी मामलों की जिसमें कहने को तो राज्य सूचना आयोग द्वारा लोक सूचना अधिकारियों द्वारा सूचना के अधिकार के विरुद्ध आचरण करने पर जुर्माना लगाया जाता है, पर, अवैधानिक ढंग से या तो उसे माफ कर दिया जाता है अथवा अपने ही फैसले को कार्यान्वित नहीं करवा पाता. विदित हो कि RTI Act में जुर्माना माफ करने या सूचना आयुक्तों के स्वविवेक से अवैधानिक निर्णय देने का कोई प्रावधान नहीं है.

(3.) मुख्य सूचना आयुक्त एवं अन्य सूचना आयुक्तों के पदों पर उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को आसीन किया जाए एवं एक सूचना आयुक्त का पद सामाजिक क्षेत्र से जुड़े व्यक्ति द्वारा भरा जाए.

ज्ञापन-
1. महामहिम राज्यपाल, बिहार
2. माननीय मुख्यमंत्री, बिहार
3. माननीय नेता, प्रतिपक्ष, बिहार विधान सभा.

शुक्रवार, 22 जुलाई 2011

सूचना आयुक्तों की नियुक्ति हेतु धरने का आयोजन

महाशय,
सूचित किया जाता है कि नागरिक अधिकार मंच के द्वारा दिनांक 25/07/2011 समय 11 AM से 3 PM तक आर ब्लाक चौराहा, पटना में एक दिवसीय धरना का आयोजन किया गया है. इस धरने को निम्नलिखित मांगों को लक्षित कर आयोजित किया गया है-
(1.)राज्य सूचना आयोग में खाली पड़े सूचना आयुक्त के पदों को शीघ्र भरने हेतु,
(2.)विगत एक वर्ष में राज्य सूचना आयोग द्वारा किए गए फैसले की जाँच उच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीश से कराए जाने हेतु,
(3.)मुख्य सूचना आयुक्त एवं अन्य सूचना आयुक्तों के पदों पर उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को आसीन करने एवं एक सूचना आयुक्त का पद सामाजिक क्षेत्र से जुड़े व्यक्ति द्वारा भरे जाने हेतु.
इससे सम्बंधित मांग पत्र महामहिम राज्यपाल (बिहार), माननीय मुख्यमंत्री, बिहार तथा नेता विपक्ष (विधान सभा, बिहार) को समर्पित किया जाएगा.

मंगलवार, 7 जून 2011

पटना में भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक कार्यशाला का आयोजन

नागरिक अधिकार मंच एवं India Rejuvenation Initiative-IRI ने मिलकर विधायक क्लब सभागार, पटना में भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक कार्यशाला का आयोजन किया. मुख्य वक्ता भूतपूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त श्री जे. एम. लिंगदोह, श्री एस. पी. ताल्लुकदार (पूर्व सदस्य, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार परिषद), श्री शिव प्रकाश राय (अध्यक्ष, नागरिक अधिकार मंच), श्री सुभाष चंद्र सिंह (Retired IPS) तथा अन्य वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किए

सोमवार, 6 जून 2011

बिहार के गांवों में स्वराज यात्रा


गांव में अलख जगाए बिना स्वराज व्यवस्था लागू नहीं हो सकती। इसी विचार के साथ बिहार में सामाजिक कार्यकर्ता परवीन अमानुल्लाह और उनके साथियों ने गांवों में स्वराज यात्रा की शुरूआत की है। पहले चरण मे स्वराज यात्रा पटना ज़िले के पांच प्रखण्डों के 25 गांवों में गई।
यात्रा के दौरान गांव गांव जाकर लोगों की बैठक के लिए आमन्त्रित किया जाता। बैठक में लोगों के सामने स्वराज से सम्बंधित चर्चा की जाती ताकि लोग लोकतन्त्र में अपनी हैसियत को समझ सके, और उसके हिसाब से अपनी भूमिका निभाने के लिए तैयार है सके। पूरी यात्रा के एक गांव में हुई बैठक की बातचीत की बानगी से समझा जा सकता है -

यात्रा निकालने का तरीका


गांव में घूमकर घोषणा:

गांव में चक्कर लगाकर कुछ साथी कार्यकर्ता माइक पर अनाउंसमेट करके आए -
`स्वराज यात्रा आपके गांव में आई है। इसमें कई सामाजिक कार्यकर्ता दिल्ली, पटना से आए हैं और आपके साथ पंचायत में आपके अधिकार के बारे में बात करना चाहते हैं। आपसे अनुरोध् है कि अधिक से अधिक लोग बैठक में पहुंचे…´
थोड़ी ही देर में बैठक में गांव के बहुत से लोग आ गए। इनमें महिलाएं, व्रद्ध, युवा हर तरह के लोग थे लेकिन गांव के नौजवान की एक बड़ी संख्या या तो खेतों पर काम करने गए हुए थे या पटना में नौकरी पर थी अत: नौजवान की संख्या अपेक्षाकृत कुछ कम ही थी। बच्चे भी उत्सुकतावश बड़ी संख्या में इकट्ठा हो गए थे।

(परिचय)
हम कौन हैं और कौन नहीं है
बैठक की शुरूआत हुई। एक कार्यकर्ता ने परिचय देते हुए कहा, `हम लोग आपके गांव में अलग अलग जगह से इकट्ठा होकर, यह स्वराज यात्रा निकालते हुए पहुंचे हैं…´ हम किसी राजनीतिक दल से नहीं आए हैं। न ही हम कोई चुनाव लड़ रहे हैं। न ही हम किसी गांव में किसी उम्मीदवार को पंचायत चुनाव में जिताने के लिए मुहिम चला रहे हैं। हम लोग स्वराज अभियान से आए हैं जो एक जन-अभियान है और किसी राजनीतिक पार्टी से सम्बंधित नहीं है…

(सरकारी पैसे से मेरा रिश्ता)
हम आपके सामने कुछ बातें रखना चाहते हैं… लेकिन उसके पहले आप सब लोगों से एक सवाल है कि आप लोगों में से कौन कौन टैक्स देता है…
(गांव के अधिकतर लोग टैक्स या कर को नहीं समझे)
कार्यकर्ता: तो अच्छा ये बताए कि आपमें से कौन कौन लोग सरकार को पैसा देते हैं… किसी भी तरीके से सरकार को पैसा कौन कौन देता है…
ग्रामवासी: हम लोग कभी कभी देते हैं… जब मालगुजारी देते हैं तब, मकान खेत आदि खरीदते हैं तब देते हैं…
कार्यकर्ता: ये तो ठीक है लेकिन आपको ध्यान नहीं है आप सारे लोग, हर रोज़ सरकार को टैक्स देते है… जब भी आप कुछ खरीदते है जैसे कि माचिस, साबुन, नमक, पेस्ट, दवाई आदि तो उसमें कीमत के साथ साथ सरकार का हिस्सा भी जुड़ा होता है… जैसे कि अगर 5 रुपए की साबुन खरीदते है तो उसमें करीब एक रुपया सरकार को जाता है… तो इस तरह हम सब लोग मिलकर हर रोज़ सरकार को करोड़ों रुपए देते रहते हैं… इस पैसे से ही सरकार हमें राशन देती है, इन्दिरा आवास देती है, पेंशन देती है, नल लगवाती है, सड़क बनवाती है, आंगनवाड़ी बनवाती है, स्कूल चलाती है… और इसी पैसे से सारे सरकारी कर्मचारियों की तनख्वाह मिलती है… तो ये जो सरकार के काम हैं ये इस सबमें हमारा पैसा ही खर्च होता है…

(जब पैसा मेरा है तो मुझसे पूछते क्यों नही)
लेकिन अब एक बात बताइए कि सरकार के नेता और अपफसरों ने हमसे कभी पूछा कि आपका पैसा, आपके गांव में हम कहां, कैसे, किस काम पर खर्च करें…
ग्रामीण : नहीं… हमसे तो कभी नहीं पूछते…. कभी किसी ने आज तक नहीं पूछा।
कार्यकर्ता: सही बात है…. दिल्ली और पटना में बैठे अधिकारी योजनाएं बनाकर भेज देते हैं और लोक अफसर को दे देते हैं कि जाओ भाई इन्हें गांव में बांट आओ ये अफसर और गांव का मुखिया मिलकर इन योजनाओं को भी खा जाते हैं या अपनों में बांट देते हैं…
अब एक बात बताइए… ये अफसर आपके पैसे से तनख्वाह लेते हैं। लेकिन कभी आकर आपसे कुछ बात पूछते हैं कि फलां योजना लेकर आये हैं… आप बताइए कि इसका लाभ किसको मिलना चाहिए…

ग्रामीण: मुखिया के साथ मिलकर सब तय हो जाता है… जिनके पास पक्के मकान हैं उनको मकान बनाने का पैसा मिल रहा है और, हम गरीबों को कोई कुछ नहीं बताता…



उत्साहजनक रहा है। पांच दिन की इस यात्रा में ही स्वराज अभियान के लिए अनेक नए साथी मिल गए हैं। हालांकि सभी गांवों को एक साथ देखेंगे तो मिला जुला अनुभव रहा है। कई गांवों में तो लगा जैसे स्वराज का विचार सुनते ही लोगों में क्रान्ति की लहर दौड़ती है। कई गांवों में पूरी बात सुनने के बाद जब लोगों से पूछा कि अब क्या करने का इरादा है तो लोग ऐसे देखते रहे मानो उन्होंने कुछ सुना ही न हो। लेकिन कुल मिलाकर कहें तो हमें उम्मीद से अधिक सफलता मिली है। - परवीन अमानुल्ला
(ये सरकारी कर्मचारी हमारे सेवक हैं या मालिक)
कार्यकर्ता: सही बात है… और ये आपके गांव में ही नहीं पूरे देश में… साढ़े चार लाख गांवों में ऐसा ही किया जा रहा है… एक और बात बताइए… आपके गांव में सरकारी कर्मचारी कौन कौन से हैं… जैसे टीचर हैं, पंचायत सेवक है… ऐसे और कौन कौन से कर्मचारी हैं जो आपके गांव में काम करते हैं
ग्रामीण: पटवारी है, ए.एन.एम. है, राशन डीलर है, आंगनवाड़ी है,… हफ्ते में एक दिन डॉक्टर का टर्न है… रोज़गार सेवक है… और भी कुछ लोग हैं।
कार्यकर्ता: तो इन सब कर्मचारियों को तनख्वाह हमारे पैसे से मिलती है… और हमारे लिए काम करने के लिए मिलती है… पर ये कर्मचारी कभी हमसे आकर पूछते हैं कि बताओ क्या करें… हमें ये काम करना है, बताओ कैसे करें, कहां करें… और अगर ये अपना काम ठीक से ना करें तो आप इनका कुछ बिगाड़ सकते हैं… किसी के खिलाफ आप कुछ एक्शन ले सकते हैं… कुछ ऐसा तरीका है कि आप इनके खिलाफ एक्शन ले सकें…
ग्रामीण: तरीका तो है… इनकी शिकायत कर सकते हैं… बड़े अफसरों के पास… पर बड़े अफसर भी तो हमारी नहीं सुनते…
कार्यकर्ता: ठीक बात है… आपकी शिकायत पर किसी कर्मचारी के खिलाफ कोई कोई एक्शन नहीं लिया गया होगा…
कार्यकर्ता: तो जब इनको तनख्वाह हमारे पैसे से मिलती है, हमारे लिए काम काम करने के लिए मिलती है फिर ये अगर हमारे हिसाब से काम न करें तो क्या इनकी तनख्वाह काटने का अधिकार हमारे हाथ में नहीं होना चाहिए… क्या इनके खिलाफ एक्शन लेने का अधिकार हमारे गांव के लोगों को नहीं होना चाहिए… मान लीजिए टीचर टाइम पर नहीं आता या ठीक से नहीं पढ़ाता… अगर गांव के लोगों के हाथ में उसकी तनख्वाह काटने की ताकत होती तो क्या हम सारे लोग मिलकर उसकी तनख्वाह नहीं कटवा देते…. अगर राशन की दुकान कैंसिल करने की ताकत हमारे हाथ में होती तो क्या राशन वाला चोरी करता…
ग्रामीण: हमारे हाथ में ताकत होती तो हम उसे चोरी क्यों करने देते… उसे कहते कि भई सब गरीबों को राशन बांटों….
कार्यकर्ता: एकदम सही बात है…. यही बात हम कहने आए हैं कि अभी आपके हाथ में एक्शन लेने की ताकत नहीं है… इसके लिए एक कानून बनाना पड़ेगा, पंचायती राज में सुधार करके इसे ठीक करना पड़ेगा कि- गांव के कर्मचारियों के खिलाफ एक्शन लेने, उनकी तनख्वाह काटने की ताकत सीधी गांव की जनता के हाथ में हो… वे जब चाहें एक साथ बैठकर, खुली बैठक में फैसला ले सकें कि ये आदमी ठीक से काम नहीं कर रहा… इसके खिलाफ ये एक्शन लें…. अगर ऐसी ताकत गांव के लोगों को मिल गई तो गांव में काम करने वाले सारे सरकारी कर्मचारी सुध्र जाएंगे…
…तो अब बताओ कि ऐसा कानून आना चाहिए कि नहीं…

(पंचायती राज कानून में सुधार)
ग्रामीण: बिल्कुल आना चाहिए…
कार्यकर्ता: तो हम ये यात्रा इसी मकसद से निकाल रहे हैं कि गांव गांव में लोग इस बात को समझें और सरकार से ऐसे कानून की मांग करने लगें… इसमें हमें चार चीज़ें मांगनी होंगी…
एक तो- गांव में सरकार द्वारा खर्च होने वाले एक एक पैसे के बारे में गांव के लोग तय करेंगे कि यह किस काम पर, कहां और कैसे खर्च होगा।
दूसरे- गांव गांव में काम करने वाले सारे सरकारी कर्मचारी जैसे अध्यापक, ए.एन.एम आदि, सीधे गांव की जनता के यानि ग्राम सभा के नियन्त्रण में हो। गांव के लोग ग्राम सभा की बैठक में ठीक से काम न करने वाले कर्मचारियों के ऊपर ज़ुर्माना लगाने, तनख्वाह रोकने के फैसले ले सके।
तीसरे- गांव की जनता यानि ग्राम सभा को यह ताकत हो कि बीडीयों जैसे अफसरों को ग्राम सभा की बैठक में आने के लिए आदेश दे सके और उनके लिए ये आदेश मानना ज़रूरी हो।
चौथी बात है कि- राज्य सरकार की कोई भी नीति गांव की जनता से पूछे बिना न बने। बनाने से पहले राज्य सरकार के लिए राज्य की सभी ग्राम सभाओं से मशविरा लेना अनिवार्य हो…
पांचवी और सबसे खास बात ये भी कि- सारे स्थानीय प्राकृतिक संसाधन जैसे नदी, जंगल ज़मीन… सब सीधे गांव की जनता के नियन्त्रण में हों, ग्राम सभा का सीध नियन्त्रण हो और किसी गांव के इलाके में आने वाली ज़मीन का अधिग्रहण बिना ग्राम सभा की मंज़ूरी के सम्भव न हो इसके लिए नियम शर्ते भी ग्राम सभा में ही तय हों।
तो ये मांग लेकर हम स्वराज यात्रा पर निकले हैं… इसके लिए कानून बदलने की ज़रूरत पड़ेगी। लेकिन बड़े पैमाने पर जनान्दोलन चलाए बिना यह नहीं हो सकता। हम सबको इसके लिए कमर कसनी होगी। हमारा अनुरोध् है कि आप सब इस आन्दोलन से जुड़िए…
ग्रामीण : ठीक बात है… हां! सब इससे जुड़ने को तैयार हैं…

(लेकिन अभी क्या कर सकते है)
कार्यकर्ता: बहुत अच्छी बात है कि आप सब इससे जुड़ने को तैयार हैं? लेकिन जब तक कानून नहीं बदले जाते तब तक भी हम अपने गांव में बहुत कुछ कर सकते हैं… पंचायती राज कानून के बारे में आप जानते हैं…
ग्रामीण: जानते हैं, मुखिया का चुनाव होता है
कार्यकर्ता: ठीक बात है… मुखिया की ज़िम्मेदारी है कि साल में कम से कम चार बार गांव की जनता की बैठक बुलाए… इस बैठक को ग्राम सभा की बैठक या खुली बैठक कहते हैं…. साल में कम से कम चार बैठक बुलवाना तो मुखिया की मजबूरी है… ज़रूरत पड़े तो हरेक महीने, यहां तक हर हफ्रते भी बैठक बुला सकता है… आपके गांव में कभी कोई बैठक होती है….
लोग: कभी नहीं होती… हमको तो कभी कोई बैठक में नहीं बुलाता…
कार्यकर्ता: बिल्कुल नहीं बुलाता होगा… लेकिन अब आप जान लीजिए… कि हरेक गांव में साल में कम से कम चार बैठकें तो मुखिया को बुलानी ही पड़ेंगी… और इन बैठकों में ही तय होगा कि किसको इन्दिरा आवास का घर मिलेगा, किसको पेंशन बंधेगी… किसको बीपीएल मिलेगा… ये सब इन बैठकों में ही तय करना होता है… आपका मुखिया भी कागजों पर ये बैठक करा देता होगा और आपमें से कुछ लोगों के अंगूठे लगाकर खानापूर्ति कर देता होगा…
लोग: ये तो हमको मालूम नहीं… कर देता होगा…
कार्यकर्ता: देखिए ये बैठकें आपकी ज़िन्दगी के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं… और आपके गांव में ही नहीं देश के लगभग सब गांवों में यही हाल है… हम पिछले चार साल से गांव गांव घूम रहे हैं… ज्यादातर गांवों में फर्जी अंगूठे लगा लगा कर बैठकें दिखाई जाती हैं… लेकिन फिर भी देश में करीब डेढ हज़ार गांव ऐसे हैं जहां ये बैठकें हो रही हैं… और ये गांव आज देश में सबसे अच्छे,… सबसे सुन्दर गांव हैं… यहां सबसे अच्छा विकास हो रहा है…


(हिवरे बाज़ार की कहानी)
एक गांव में हम गए तो वहां तो पिछले बीस साल से सारे फैसले ग्राम सभा बैठकों में ही हो रहे हैं…
इस गांव में लोग 20 साल पहले आपस में इतना लड़ते थे कि हफ्ते में एक बार पुलिस का आना तो आम बात थी। हर घर में शराब बनती थी। आसपास के इलाके में पूरा गांव बदनाम था। लेकिन 20 साल पहले यहां के 10-15 युवाओं ने मिलकर तय किया कि अब हमारे गांव में ऐसा नहीं होगा। इसकें लिए उन्होंने ग्राम सभा का रास्ता चुना। उन्होंने अपने में से एक युवक को मिलकर मुखिया बनवाया और इसके बाद गांव का हर फैसला ग्राम सभा में लेना शुरू कर दिया गया।
पिछले 20 साल से वहां हर महीने कम से कम एक ग्राम सभा होती है… ज़रूरत पड़ने पर हफ्ते में भी ग्राम सभा होती है… इन ग्राम सभाओं के चलते ही आज यह गांव देश का सबसे अच्छा गांव बन गया है।
20 साल में इस गांव की काया पलट गई है। 1989 में वहां प्रति व्यक्ति आय मात्रा 840/- प्रति वर्ष थी। अब वह बढ़कर 28000/- हो गई है। 1989 में वहां 90 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे थे। अब केवल तीन परिवार गरीबी रेखा के नीचे हैं। अब पिछले पांच वर्षों में एक भी अपराध् नहीं हुआ है। पहले लोग झुिग्गयों में रहते थे। अब सबके पक्के मकान हैं। हर मकान में बिजली और पानी है। गांव में खूबसूरत सड़कें हैं, बढ़िया अस्पताल है, बढ़िया स्कूल है. यह चमत्कार इसलिए हुआ क्योंकि यहां हर फैसला खुली बैठक में यानि कि ग्राम सभा में सीधे जनता लेती है।
और ये चमत्कार आपके गांव में भी हो सकता है… आप में से अगर 10 युवा भी दिल पर हाथ रखकर ये सोचें कि मैं अपने गांव से प्यार करता हूं और अपने गांव के लिए कुछ करना मेरा फर्ज है तो आपके गांव में भी ग्राम सभाएं शुरू हो सकती है।
अगर आपके गांव में भी ग्राम सभा बैठकें होने लगें तो ये गांव भी हिवरे बाज़ार की तरह बन सकता है। आज के कानून के हिसाब से भी… अगर ग्राम सभा बैठकें करवाने लगें तो हालात काफी सुधर सकते हैं…
तो हम यहां कुल मिलाकर दो बातें रख रहे हैं… एक तो नया कानून लाने की जिसके हिसाब से सरकार का सारा काम, पैसा और कर्मचारी सीधे सीधे गांव की जनता के नियन्त्रण में होना चाहिए. .. दूसरी बात ये कि आप अपने गांव में ग्राम सभा की बैठकों की शुरुआत कराइए…. बिना ग्राम सभा की बैठक के आपके गांव में कुछ काम न हो… पहली बात नया कानून बनाने की… कानून बनना तो अभी दूर की बात है, इसके लिए आन्दोलन करना पडे़गा… पर ग्राम सभा का कानून तो पहले से ही बना हुआ है… इसका पालन कराना हमारे लिए आज ही से सम्भव है…
लोग: लेकिन हमारे यहां तो लोगों में एकता ही नहीं है…

(एक्शन प्लान)
कार्यकर्ता: आप ठीक कह रहे हैं… लेकिन अब हमारे सामने दो-तीन ही विकल्प हैं… या तो भगवान एक दिन हमारे गांव के तमाम लोगों आशीर्वाद दे दे कि भई आज से तुम एकता में जियोगे… तो तब तक का इन्तज़ार किया जाए. इस तरह हम अगले 100 साल, हज़ार साल इन्तज़ार करते रहें… या फिर हम लोगों की बैठके करवाना शुरू करें… शुरू में थोड़े बहुत मतभेद सामने आएंगे लेकिन जब ग्राम सभाओं के नतीज़े निकलने लगेंगे तो धीरे धीरे सब एक होने लगेंगे… एक और रास्ता ये भी है कि दिल्ली या पटना में कभी कोई महान नेता ऐसा हो जाए जो हमारे गांव की सुधार दे और हमारे गांव में ग्राम सभा करवाने के लिए व्यवस्था कर दे… तो अब बताईए आप कौन सा रास्ता चुनना चाहते हैं… इन्तज़ार का या खुद कुछ करने का…
लोग : खुद ही कुछ करना पड़ेगा वरना तो सुधार नहीं होने वाला…
कार्यकर्ता : एकदम ठीक कहा आपने… अब इतनी बात जानने सुनने के बाद बताईए कि यहां मौजूद लोगों में से खासकर युवाओं में से कौन कौन लोग सोचते हैं कि उन्हें कुछ करना है, किसका मन बना है कि अपनी ज़िम्मेदारी निभाई जाए…
(थोड़ी बहुत चुप्पी के बाद कम से कम 10-15 लोग आगे आते हैं और अपना नाम आदि लिखवाते है)
बिख्तयारपुर प्रखण्ड के सैदपुर गांव में तो लोगों ने आगे आकर शपथ ली कि वे अब ग्राम सभा पर ही काम करेंगे।
इस तरह हरेक गांव से 10-15 युवाओं का समूह बनता जा रहा है। परवीन अमानुल्लाह का कहना है कि एक बार यात्रा पूरी होने के बाद इन युवाओं को पटना में बुलाकर एक दिन के लिए इन्हें और गहराई से स्वराज के बारे में समझाया जाएगा। और तब इनके साथ मिलकर आस पास के अन्य गांवों में भी स्वराज अभियान चलाया जाएगा।

रविवार, 29 मई 2011

बिजली के ग्यारह हजार वोल्ट के तार टूटने से हुई बच्चा सह की मौत


यह बक्सर जिले के ग्राम+पोस्ट+थाना- धनसोई की घटना है. गांव के विन्देश्वरी साह उर्फ बच्चा साह सत्रह फरवरी 2011 को अहले सुबह शौच के लिए नदी की तरफ जा रहे थे कि रास्ते में ग्यारह हजार वोल्ट के मुख्य तार के टूटकर गिर जाने के चलते उसके चपेट में आ गए. विद्युत तार के स्पर्श होते ही उनका पूरा शरीर धू-धू कर जल उठा और उनकी मौके पर ही दर्दनाक मौत हो गयी. बच्चा साह परिवार के एकमात्र कमाऊ व्यक्ति थे, जो नित्य छोला-पकौड़ी बेचकर अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे. उनकी मौत के बाद पत्नी एवं बाल-बच्चों का हाल-बेहाल है. क्या विद्युत विभाग को उनकी लापरवाही से हुई मौत के लिए इनके आश्रितों को उचित मुआवजा नहीं देनी चाहिए ? सभी प्रबुद्ध और संवेदनशील मित्रों से आग्रह है कि कृपया मुझे उचित प्रक्रिया बताएं जिससे इनके आश्रितों को उचित मुआवजा दिलाई जा सके. विस्तृत जानकारी के लिए कृपया लिंक पर क्लिक करें

शुक्रवार, 27 मई 2011

"सूचना का अधिकार और ग्राम स्वराज्य" विषय पर सेमिनार


"सूचना का अधिकार और ग्राम स्वराज्य" विषय पर वैशाली जिला के देशरी प्रखंड में नागरिक अधिकार मंच और सूचना प्रसारण मंत्रालय के संयुक्त तत्वावधान में एक सेमिनार का आयोजन किया गया है, समान रुचि के मित्रों से आग्रह है कि अगर आने में कोई कठिनाई ना हो तो अवश्य पधारें.

सोमवार, 23 मई 2011

नागरिक अधिकार मंच का सेमिनार औरंगाबाद में.

औरंगाबाद, जागरण संवाददाता : शहर के श्री कृष्ण नगर श्रीमन्न नारायण भवन में रविवार को नागरिक अधिकार मंच के द्वारा सूचना के अधिकार एवं ग्राम स्वराज विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया। उद्घाटन खादी ग्रामोद्योग के अध्यक्ष त्रिपुरारी शरण ने किया। अध्यक्ष ने कहा कि समाज में परिवर्तन और कुरीतियों को दूर करने के लिए सूचना के अधिकार को मजबूत करना होगा। ग्राम स्वराज स्थापित करने के लिए गांव स्तर पर टास्क फोर्स का गठन कर आंदोलन करना होगा। तभी समाज के हर वर्ग को न्याय मिलेगा। खादी से रोजगार सृजन के क्षेत्र में कार्य किया जा रहा है। देव प्रखंड के खडिहा गांव निवासी जेपी के अनुयायी अध्यक्ष ने कहा कि भ्रष्ट अधिकारी एवं कर्मचारी सूचना के अधिकार को लागू नहीं होने देना चाहते हैं। इसके लिए समाज के बुद्धिजीवियों को आगे आना होगा तभी उन्हें हक और अधिकार मिलेगा। सूचना मांगने वालों को अगर प्रताड़ित किया जाएगा तो नागरिक अधिकार मंच प्रताड़ित करने वालों के खिलाफ न सिर्फ आंदोलन करेगी बल्कि कानूनी कार्रवाई कराएगी। मुख्य अतिथि मंच के अध्यक्ष शिवप्रकाश राय, संरक्षक डा. एसएन उपाध्याय, शिक्षाविद प्रो. नवल किशोर, अजय श्रीवास्तव, प्रो. जगनाथ सिंह, एसपी राय, इरफान अहमद ने कहा कि लोगों को न्याय दिलाने एवं भ्रष्टाचार को खत्म करने में सूचना का अधिकार एक हथियार है। इसे मजबूत करने के लिए सभी को आगे आना होगा।

गुरुवार, 19 मई 2011

भवन निर्माण विभाग में अवैध कब्जे का खेल - Information collected through RTI.

सेवा में,

माननीय मुख्यमंत्री जी,
बिहार सरकार, पटना 

एक तरफ बिहार सरकार के हजारों कर्मचारी पटना में आवास के लिए वर्षों से प्रतिक्षारत हैं, तो दूसरी तरफ सरकारी कर्मचारियों के लिए बनाए गए आवास विभागीय पदाधिकारियों की मदद से अवैध कब्जे के शिकार हैं. मैंने सूचना के अधिकार के तहत इन आवासों के बारे में विस्तृत जानकारी हासिल की है, जिसके तरफ आपका ध्यान आकर्षित करना अत्यावश्यक लगा. विभाग द्वारा उपलब्ध कराये गए सूचना के अनुसार 390 आवास खाली हैं. विभाग द्वारा दी गयी सूचना के अनुसार तो ये फ्लैट खाली हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि विभागीय पदाधिकारियों की मिलीभगत से इन आवासों में कोई ना कोई रह रहा है. पटना में एक आवासीय फ्लैट का कम से कम किराया तीन हजार रूपए प्रतिमाह है. इस तरह सरकार को कम से कम 11,70,000 (ग्यारह लाख सत्तर हजार) रूपए के राजस्व की क्षति प्रतिमाह हो रही है. इतना ही नहीं पात्र अभ्यर्थियों को आवास का संकट भी झेलना पड़ रहा है. मैंने इन सूचनाओं को  गूगल डोक्स पर अपलोड किया है, आप चाहें तो नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर सारी वस्तुस्थिति से अवगत हो सकते हैं.


विश्वासी-

शिव प्रकाश राय 
गली नं- 2
धोबीघाट, चरित्र भवन, बक्सर
जिला - बक्सर (बिहार).
मोबाईल नं- 09931290702
Blog- 

रविवार, 15 मई 2011

बिहार में भ्रष्टाचारियों के सजा का प्रतिशत

दैनिक हिंदुस्तान में छपी खबर के अनुसार बिहार में भ्रष्टाचारियों के सजा का प्रतिशत 78 है जबकि निगरानी विभाग द्वारा उपलब्ध कराई गयी आधिकारिक जानकारी के अनुसार 2.19%. लिंक पर क्लिक कर पूरी सूचना पढ़ सकते हैं साथ में हिन्दुस्तान में छपी खबर भी. 1990 से लेकर 2010 तक कुल दर्ज 1139 मामलों में से मात्र 25 को सजा मिली है

मंगलवार, 12 अप्रैल 2011

नागरिक अधिकार मंच इस आंदोलन में देशहित हेतु शामिल जरुर है, पर इन प्रश्नों के साथ.

जन लोकपाल विधेयक कमोवेश अब अन्ना हजारे लोकपाल विधेयक बनते जा रहा है. अन्ना हजारे तो मात्र एक चेहरा हैं जो भारतीय जनमानस के मन में भ्रष्टाचार के विरुद्ध उत्तेजना को प्रदर्शित करने हेतु चुन लिए गए हैं. पर शायद वे भी सफलता के मद से मदहोश होने लगे और अब सरकारों और मुख्यमंत्री को प्रमाणपत्र बांटने लगे. वे महाराष्ट्र और दिल्ली में रहकर जन लोकपाल विधेयक हेतु समर्थन जुटाने का काम करने में लगे रहें तो ज्यादा अच्छा रहेगा. अरविंद केजरीवाल तो स्वयं समाज सेवा का मार्केटिंग करते हैं और पूरे देश में आईएस लॉबी में संपर्क रखकर अपना प्रचार-प्रसार करने में मशगूल रहते हैं. यही लोग तो हैं जो सरकार और समाज सेवियों के बीच मैनेजर की भूमिका में नजर आते हैं. पिता -पुत्र को कमिटी में रखने का कोई मतलब नहीं है. कई दशकों से संघर्षरत मेधा पाटेकर का इस पूरे एपिसोड से संबद्ध ना रहना आंदोलन के अधूरेपन को दर्शाता है. नागरिक अधिकार मंच इस आंदोलन में देशहित हेतु शामिल जरुर है, पर इन प्रश्नों के साथ.

अन्ना के साथ खड़े हुए करोड़ों हाथ


बक्सर, नगर संवाददाता : भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे की चिंगारी अब आग का रूप ले चुकी है। पूरे जिले में शुक्रवार को भ्रष्टाचार के खिलाफ जबरदस्त अभियान शुरू हुआ। जिसमें दलगत भावनाओं से ऊपर उठकर राजनीतिक दलों के लोगों ने भी भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम में शामिल होने का ऐलान किया। वहीं, कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने एक दिवसीय सांकेतिक उपवास रख जन लोकपाल बिल के विधेयक का समर्थन किया।

सामाजिक कार्यकर्ताओं ने रखा उपवास

गांधीवादी अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आमरण अनशन को नैतिक समर्थन देने के लिए युवा क्रांति व नागरिक अधिकार मंच के बैनर तले सामाजिक कार्यकर्ताओं ने पुलिस चौकी के समीप एक दिवसीय उपवास रखा। दिनभर के उपवास के बाद एक सभा का आयोजन हुआ, जिसकी अध्यक्षता मंच के संयोजक शिवप्रकाश राय ने की। उन्होंने कहा कि जन लोकपाल विधेयक को मिल रहे जन समर्थन से राजनीतिक दलों को यह समझ जाना चाहिये कि भ्रष्टाचार से आमजन कितने परेशान हैं। मंच संचालन राकेश रत्न राय व बजरंगी सिंह ने किया। इस मौके पर नीरज श्रीवास्तव, प्रो.परमात्मा पाठक, प्रो.श्यामजी मिश्रा, डा.वंशीधर गिरी, रोहतास गोयल, मधुकर आनंद, उपेन्द्र दूबे, डब्लू यादव, प्रियरंजन राय, पिंटू चौबे व अधिवक्ता तेज प्रताप सिंह छोटे समेत अनेक समाजसेवी शामिल थे।

विद्यार्थी परिषद ने चलाया हस्ताक्षर अभियान

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के छात्रों ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर शुक्रवार को कोचिंग संस्थाओं में जाकर हस्ताक्षर अभियान चलाया। इस दौरान छात्र नेताओं ने कहा कि भ्रष्टाचार ने देश को तबाह कर दिया है। युवा वर्ग इसे अब और बर्दाश्त नहीं कर सकता। इसलिये वे लोग अन्ना हजारे के मसौदे के समर्थन में पूरे युवा वर्ग को एकजुट करने के लिए सड़क पर उतरे हैं। अभियान का नेतृत्व परिषद के नगर मंत्री रामजी सिंह ने किया। अभियान में श्यामजी वर्मा, गंगाधर सर्राफ, राजू सिंह, आशीष, अतुल, अनुराग व सोनू सिंह आदि शामिल थे।

आंदोलन में कूदा ग्राहक पंचायत

भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम को बक्सर जिला ग्राहक पंचायत ने भी समर्थन देने का ऐलान किया है। पंचायत के अध्यक्ष रोहतास गोयल के नेतृत्व में संगठन के कई कार्यकर्ता शुक्रवार को वीर कुंवर सिंह चौक पर आयोजित उपवास कार्यक्रम में शरीक हुए। इस मौके पर श्री गोयल ने कहा कि अन्ना की जलायी आग अब भ्रष्टाचार को जला कर ही बुझेगी। इस मौके पर पंचायत के प्रदेश प्रभारी प्रदीप केशरी, रामआशीष यादव, टुन्नू राय व अशोक कुमार राय आदि मौजूद थे।

माकपा ने किया अनशन

अन्ना हजारे के समर्थन में भारत की कम्रूूनिंस्ट पार्टी मा‌र्क्सवादी के कार्यकर्ताओं ने शहीद भगत सिंह पाक में एक दिवसीय अनशन किया। इस मौके पर पार्टी के जिला सचिव का.गणेश राम ने कहा कि जन लोकपाल बिल को सरकार तुरंत मान ले नहीं तो आम जनता मान लेगी कि सरकार भ्रष्टाचार को खत्म करना नहीं चाहती। श्री राम ने अन्ना हजारे की मांग तुरंत नहीं माने जाने पर आंदोलन और तेज करने की बात कही। धरना का नेतृत्व संजय कुमार यादव व मंच संचालन गुड्डू शर्मा ने किया। इस मौके पर वीरेन्द्र कुमार राम, महंगू राम, जनार्दन सिंह यादव, विंध्याचल राय व मयनुद्दीन अंसारी आदि मौजूद थे।

लायंस भी हुआ मुहिम में शामिल

भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम में लायंस क्लब आफ डुमरांव भी शामिल हो गया है। क्लब के लोगों ने जन लोकपाल बिल पर जागरुकता अभियान चलाने का निर्णय लिया है। क्लब के अध्यक्ष सह वार्ड पार्षद धीरज कुमार ने कहा कि भ्रष्टाचार समाज के लिए नासूर बन चुका है। ऐसे में एक सख्त कानून की जरूरत है जिससे भ्रष्टाचारियों में भय का वातावरण बने। साथ ही इसके दायरे में देश के शीर्ष पद व शीर्ष संस्थायें भी रहें।

युवा भारत नहीं सहेगा भ्रष्टाचार


बक्सर, नगर संवाददाता : भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने का एक मौका क्या मिला, समाज के हर वर्ग एकजुट होने लगे। इस मुद्दे पर दैनिक जागरण को कई युवाओं ने बताया कि नई पीढ़ी भ्रष्ट समाज में जीना नहीं चाहती। इसलिये व्यवस्था में बदलाव जरूरी है।

युवा नीरज श्रीवास्तव ने कहा कि यह कोई राजनीतिक लड़ाई नहीं है। भ्रष्टाचार से सबसे ज्यादा प्रभावित युवा वर्ग है। अब यह सब ज्यादा दिनों तक चलने वाला नहीं है। राजनीतिक दलों को यह बात समझ लेना चाहिये। मधुकर आनंद का कहना था कि अन्ना हजारे जैसे वृद्ध हमलोगों के लिए लड़ सकते हैं तो फिर हमलोग केवल उन्हें साथ क्यों नहीं दे सकते। यह आंदोलन बड़ी क्रांति का रूप लेगा। युवा राकेश रत्‍‌न राय का कहना है कि भ्रष्टाचार किसी अकेले की समस्या नहीं है। नेताओं को समझना चाहिये कि उनके बच्चे भी इससे प्रभावित हैं। प्रियरंजन राय ने कहा कि बस देश से भ्रष्टाचार मिट जाये तो हम दुनिया में सबसे आगे होंगे। उन्होंने जन लोकपाल बिल को जल्द लागू करने की मांग की। चंद्रभूषण राय ने कहा कि देश के विकास में भ्रष्टाचार बाधक है। इसे हम लोग खत्म करके ही दम लेंगे। आरटीआइ कार्यकर्ता शिवप्रकाश राय ने कहा कि जन लोकपाल बिल पारित होने से भ्रष्टाचार के जांच में जनता की भागीदारी सुनिश्चित हो सकेगी। तब कोई भी खुलेआम देश का पैसा लूट कर बाहर के बैंकों में नहीं रख सकेगा।

अन्ना हजारे के समर्थन में आए बिहार के लोग

अन्ना हजारे के समर्थन में आए बिहार के लोगपटना। जन लोकपाल विधेयक के मुद्दे पर नई दिल्ली में आमरण अनशन पर बैठे सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के समर्थन में बिहार भी खड़ा नजर आ रहा है। उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने भी इसका समर्थन किया है।

नागरिक अधिकार मंच के महासचिव रमेश चौबे ने बुधवार को कहा है कि यदि अन्ना की मांगों को केन्द्र सरकार द्वारा नहीं माना गया तो मंच के लोग 17 अप्रैल से सामूहिक उपवास पर बैठेंगे।

इधर, राज्य के उपमुख्यमंत्री मोदी ने भी निजी तौर पर इसका समर्थन किया है। उन्होंने कहा है, "मैं अन्ना की मांग का निजी तौर पर समर्थन करता हूं। बिहार ने तो भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई पहले ही प्रारम्भ कर दी है।" नगारिक अधिकार मंच के बैनर तले मंगलवार को पटना में करीब 100 सामाजिक कार्याकर्ताओं और छात्रों ने उपवास रखा।

इधर, इंडिया अगेंस्ट करप्शन, पटना के समन्वयक डा़ रत्नेश चौधरा ने अन्ना के समर्थन के लिए एसएमएस अभियान चला रखा है। वे कहते हैं कि इस आंदोलन को

सोमवार, 4 अप्रैल 2011

मांगी सूचना मिली जेल

आजादी के साठ वर्ष बाद भी नौकरशाही शासकवादी मानसिकता से उभर नहीं पाई है। नौकरशाह सरकारी नौकर जैसा कम और शासक जैसा व्यवहार ज्यादा करते है। कुछ ऐसा ही दिखता है बिहार में, जहॉ इन नौकरशाहों से आम जनता सवाल पूछे यह इनसे बरदाश्त नहीं हो पा रहा है। यही कारण है कि राज्य में इस कानून के तहत सूचना मांगनें वालों को झूठे और संगीन आरोपों में फंसाकर जैल में बंद करने की अनेक घटनाएं सामने आई हैं।
बिहार के शिव प्रकाश राय पर बक्सर के पूर्व जिलाधिकारी ने राय पर 25 हजार रूपये प्रतिमाह रंगदारी टैक्स मांगने का आरोप लगाया। झूठे आरोप में उन्हें जेल में बंद कर दिया गया और 29 दिनों के बाद रिहा किया गया। राय का दोष सिर्फ इतना था कि उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत इंदिरा आवास योजना का लाभ पाने वाले लोगों का ब्यौरा मांगा था।
एक अन्य मामले में नालंदा जिले के पुरषोत्तम प्रसाद को भूमि सुधारों की जानकारी मांगने पर मिट्टी का तेल चुराने के झूठे आरोप में फंसा दिया गया। सेना से रिटायर हो चुके चन्द्रदीप सिंह की कहानी इनसे भी बुरी है। उन्हें मानेर में एक महिला से बलात्कार की कोशिश के मामले में फंसाया गया क्योंकि चन्द्रदीप ने पुलिस से अपने पुत्र और पुत्री की हत्या की जांच की जानकारी मांगी थी। एक निर्माणाधीन ओवरब्रिज की जानकारी मांगने पर जयप्रकाश को सरकारी सेवकों को काम न करने देने और निर्माण कार्य में बाधा पहुंचाने का आरोप लगा।
नौकरशाहों का यह रवैया सिद्ध करता है कि वे सूचना के कानून के माध्यम से पूछे गए सवालों का जवाब देना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं। सदियों से चली आ रही शासकवादी मानसिकता से वे आज भी उबर नहीं पाए हैं।

ईमानदार और कड़क आईपीएस अफसरों के खिलाफ साजिश


राज्य के दो दर्जन आईपीएस पर गंभीर आरोप है, लेकिन इस खबर के पीछे की सच्चाई कुछ और बयां करती है। हकीकत यह है कि इसका खुलासा सूचना का अधिकार (आरटीआई) से किया है। मिली जानकारी के अनुसार बक्सर के शिवप्रकाश राय को इस संबंध में जो सूचना गृह विभाग के लोक सूचना पदाधिकारी धीरेन्द्र मोहन झा ने उपलब्ध करायी है उसके अनुसार राज्य के दो दर्जन आईपीएस पर विभिन्न तरह के आरोप हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि राज्य के एक वरिष्ठ नौकरशाह की पत्नी से आवेदक शिवप्रकाश राय के अच्छे संबंध हैं। वे उन्हें समाज के लोगों के बीच ‘मदर टेरेसा’ के नाम से संबोधित करते हैं।

इन दो दर्जन आईपीएस के बारे में सरेआम चर्चा होती है कि इनमें अधिकांश पदाधिकारी ईमानदार हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि इन सभी पदाधिकारियों को चुनाव के समय विभिन्न जिलों में चुनाव आयोग निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए भेज सकती है। इसी को लेकर राज्य के कुछ चुनिंदा पदाधिकारी आरटीआई का सहारा लेकर मीडिया के माध्यम से इन अफसरों को चुनाव आयोग के सामने बेनकाब कराना चाहती हैं। लेकिन इनमें अधिकांश पदाधिकारियों पर कोई भी गंभीर आरोप नहीं हैं।

आरोप भी इस प्रकार के हैं कि उन पर चुनाव आयोग भी गंभीर नहीं हो सकता है। मसलन पटना के ग्रामीण एसपी क्षत्रनील सिंह पर पथ निर्माण विभाग के कार्यपालक अभियंता योगेन्द्र पाण्डेय को सुरक्षा गार्ड उपलब्ध नहीं कराने का आरोप है। इस मामले में उनसे स्पष्टीकरण मांगा गया है। आईपीएस अमरेन्द्र कुमार सिंह पर अनाधिकृत रूप से अनुपस्थित रहने और डीआईजी अजय कुमार वर्मा पर अनुशासनहीनता, आदेश का उल्लंघन एवं उच्च अधिकारियों के विरुद्ध असंसदीय भाषा का प्रयोग करने का आरोप है। भागलपुर के आईजी अमरेन्द्र कुमार अम्बेदकर पर भी गलत आचरण का आरोप है। अजीत ज्वाय पर भी अनाधिकृत रूप से अनुपस्थित रहने का आरोप हैं।

मोतिहारी के एसपी पारसनाथ पर एक केस को कमजोर करने का आरोप है। एडीजी रेल शफी आलम पर बिना सरकार के अनुमति के विदेश यात्रा करने का आरोप है। डीजी ट्रेनिंग मनोजनाथ पर भी आदेश का उल्लंघन व अमर्यादित पत्राचार करने का आरोप है। लेकिन, इन दोनों अधिकारियों को कैट के आदेश पर दोनों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई पर रोक लगा दी गयी है। आरा के एसपी अनिल किशोर यादव पर गंभीर कदाचार के आरोप हैं। डीआईजी प्रशासन पर भी बिना चरित्र सत्यापन के ही आम्र्स लाइसेंस जारी करने की अनुशंसा हैं। वहीं आईपीएस एच.एन. देवा पर भी बिना टिकट यात्रा करने का आरोप है।

बीएमपी के कमांडेंट अमिताभ कुमार दास के बारे में कहा जाता है कि ये ईमानदार और कड़क अफसर हैं। इन्हें राजद के शासनकाल में लगभग आठ जिलों में कप्तान के रूप में राज्य सरकार ने भेजा था, लेकिन इस सरकार में उन्हें सिर्फ बीएमपी में कमांडेंट के रूप में पदस्थापित किया है। उन पर भी मर्यादा के प्रतिकूल आचरण करने का आरोप है। जबकि कैट ने उन्हें क्लीनचिट प्रदान की है। वहीं इस बारे में राज्य के गृह सचिव अमीर सुबहानी के अनुसार कई आईपीएस अफसरों के खिलाफ आरोप लगे हैं। लेकिन, पूरी जांच-पड़ताल के बाद ही इस संबंध में कुछ कहा जा सकता है।

लड़ने के जज्बे को मिला सम्मान


अपने समाज, आसपास और खुद अपने लिए कुछ करने का माद्दा हो तो फिर इंसान को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। ऐसे ही हिम्मत का परिचय देने वालों को समाज नमन करता है। फिर चाहे वह भ्रष्टाचार की पोल खोलना हो या अपने शहर व गांव के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करना हो। वीडियो के माध्यम से अपनी बात कहनी हो या एक फोटो से सारी कहानी बयां करना हो। चाहे जिस तरह की भी हिम्मत आप दिखाते हों, उसका सम्मान दुनिया करती है। सीएनएन आईबीएन ने आईडिया सैलुलर के साथ मिलकर ऐसे हिम्मती लोगों को सिटीजन जर्नलिस्ट अवार्ड देकर सम्मानित किया।

बॉलीवुड अभिनेता अभिषेक बच्चन ने ताज होटल में हुए इस अवार्ड समारोह में विजेताओं को ट्रॉफी देकर सम्मानित किया। सिटिजन जर्नलिस्ट अवार्ड में कुल छह कैटेगरी रखी गई, जिनके विजेताओं को यहां सम्मानित किया गया।

फाइट बैक कैटेगरी में एचएस डिलीमा, मजलूम और शिव प्रकाश राय को सम्मानित किया गया। सेव योर सिटी कैटेगरी में महेन्द्र अग्रवाल, एसके माहेश्वरी और एसएन सिंह विजेता बने। अनीता भार्गव, नीना चौधरी और विजय लक्ष्मी कौशिक को बी द चेंज कैटेगरी में सम्मानित किया गया। फाइट फॉर हर राइट कैटेगरी में अपने अध्यापक के शारीरिक शोषण के खिलाफ आवाज उठाने वाली चौदह लड़कियों में से एक और एश्वर्या शर्मा, किरन कु़मारी व मीतू खुराना सम्मानित की गईं। बेहतरीन वीडियो के लिए प्रकाश ए नाडर और बेहतरीन फोटो के लिए दिल्ली की रितू मेहरा व एलवी श्रीनिवासन को सम्मानित किया गया।

देखें: सिस्टम के खिलाफ की आवाज बुलंद, इनको सलाम

नई दिल्ली। IBN नेटवर्क ने समाज के उन लोगों को सम्मानित किया जिन्होंने सिस्टम में बदलाव के लिए सिटिजन जर्नलिस्ट बनकर लोगों की आवाजें बुलंद की। और इस सम्मान में आइडिया ने IBN नेटवर्क का सहयोग किया। दिल्ली में आयोजित इस खास सम्मान समारोह में अभिषेक बच्चन ने भी उन लोगों का हौसला बढ़ाया


19 जनवरी की रात तीसरे सिटिजन जर्नलिस्ट अवार्ड्स का शानदार आगाज हुआ। सिटिजन जर्नलिस्ट यानि वो आम आदमी जिसने समाज में हो रही गड़बड़ियों के खिलाफ आवाज बुलंद की और इनके हौसले और जज्बे को प्लेटफॉर्म दिया आईबीएन नेटवर्क ने। इन अवार्ड्स के लिए 6 अलग अलग कैटेगरीज़ में 16 लोगों को चुना गया। सम्मान पाने वाले ये सिटिजन जर्नलिस्ट भले ही आम इंसान हो लेकिन इनका संघर्ष और इनका जज्बा इन्हें खास बनाता है।

रिक्शा चलाने वाले मज़लूम की भले ही सरकार में कोई पैठ ना हो लेकिन उन्होंने बिना घूस दिए अधिकारियों को ना सिर्फ अपना बल्कि अपने जैसे सैकड़ो लोगों को हक देने के लिए मजबूर कर दिया।

शिव प्रकाश राय ने झूठे मामले में जेल में ठूंसे जाने के बावजूद भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी मुहिम जारी रखी और करोडों रुपयों का हेरफेर करने वाले अधिकारियों को सजा दिलावाई।


वहीं महिलाओं से लोकल ट्रेन में छेड़छाड़ के खिलाफ विजय लक्ष्मी ने बिगुल बजा दिया और महिलाओं के लिए ट्रेनों में बोगी और महिला स्पेशल ट्रेन लेकर ही दम लिया।

किसानों के हक के लिए लड़ता एक किसान

बक्सर। सरकारी गतिविधियों के बारे में जानना हमारा बुनियादी हक़ है। लेकिन आम आदमी अगर इस हक का इस्तेमाल करना चाहें तो व्यवस्था उसकी हिम्मत तोड़ने की पुरजोर कोशिश करती है। सिटीज़न जर्नलिस्ट शिव प्रकाश के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ लेकिन उनकी हिम्मत ने एक नई मिसाल कायम कर दी।
शिव प्रकाश राय पेशे से एक किसान हैं। वो बिहार के बक्सर जिले के रहने वाले हैं। प्रधानमंत्री रोजगार योजना के तहत किसानों के लिये जो पैसा आता है वो सरकारी बैंकों के जरिए उनमें बांटा जाता है। शिव प्रकाश ने देखा कि ये किसानों की जरूरत के लिए आने वाला पैसा सही तरीके से नहीं बंट रहा था। फिर उन्होंने सूचना के अधिकार का इस्तेमाल कर ये ब्यौरा मांगना चाहा कि किसानों के लिये प्रधानमंत्री रोजगार के तहत कितना रुपया आता है।
बिहार के बक्सर जिले में गांववालों की इतनी ज़मीन है कि प्रधानमंत्री रोज़गार योजना के तहत हर किसान को खेती और सिंचाई के लिए पैसा मिलना चाहिए।
शिव प्रकाश ने इस सिलसिले में सूचना आयोग से जिले के 59 बैंकों से आए हुए रुपयों की जानकारी मांगी। शिव प्रकाश से RTI के जबाव में कहा गया कि ये जानकारी उन्हें जिला अधिकारी से मिलेगी और उसके लिए उन्हें जिला तहसील में दोबारा RTI दाखिल करनी होगी। शिव प्रकाश ने कई अधिकारियों और दफ्तरों के चक्कर लगाए। लेकिन फिर भी उन्हें कोई जानकारी नहीं दी गई।
2007 में जब शिव प्रकाश अधिकारी से मिले तो जानकारियां देने के बहाने उनसे ज़बर्दस्ती एक सादे कागज पर हस्ताक्षर करवा लिए गए। जब शिव प्रकाश ने विरोध जताया तो उन पर रंगदारी और जिलाधिकारी के साथ मारपीट का आरोप लगा दिया गया और उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया।
जेल से रिहा होने के बाद शिव प्रकाश ने अपना संघर्ष जारी रखने का फैसला किया। अब उनकी लड़ाई दोहरी थी। शिव प्रकाश ने फैसला किया कि उनके साथ हुए ग़लत व्यवहार के लिए जो अधिकारी दोषी हैं वो उन्हें सजा दिलवाएंगे। इसके अलावा किसानों को मिलने वाले पैसे का ब्यौरा जानने के लिए भी शिव प्रकाश ने अपनी लड़ाई जारी रखी। अपने सवालों के जवाब पाने के लिए वो दफ्तरों और अधिकारियों सरकारी नौकरशाही के लगातार चक्कर काटते रहे। शिव प्रकाश के साथ जो हुआ वो ये दिखाता है कि नौरकशाही अपने खिलाफ लड़ने वालों को कमजोर बनाने की हर संभव कोशिश करती है।
फिर भी शिव प्रकाश ने अपनी लड़ाई जारी रखी और उनका संघर्ष रंग लाया। सूचना आयोग ने दोषी अधिकारियों के खिलाफ जांच के आदेश दिए और बहुत जल्द पाया गया कि बक्सर के जिलाधिकारी विशुन देव प्रसाद ग़लत हैं। झूठे मामले में फंसाए जाने को लेकर उनपर 25 हजार रुपए का आर्थिक दंड लगाया गया।
हालात आपको चाहे कितना भी कमज़ोर बना दे पर सच्चाई की जंग जीतने का जज्बा खुद में होना चाहिए।