बुधवार, 11 जनवरी 2012

फेसबुक पर बस शाईनिंग बिहार बोलना है, वरना मार पड़ेगी.

फेसबुक पर कुछ मित्र बिहार के बारे में केवल और केवल पोजिटिव ही सुनना चाहते हैं. मुझे भी बिहार में हो रहे सकारात्मक बदलाव महसूस हो रहे हैं पर इसका मतलब यह तो नहीं कि निगेटिव बातों को ढँक दिया जाए या पूरी शक्ति से उसे दबा दिया जाए. बिहार के कितने किसान, मजदूर, गाँवों में रहनेवाले अथवा शहर में ही रह रहे अपेक्षाकृत निम्न आय वर्ग के लोग फेसबुक अथवा सोशल मीडिया के संपर्क में हैं ? उनकी बातों को मेरे जैसे लोग ही तो सही तरीके से रख सकते हैं जो स्वयं उसी परिवेश में रहते हैं अथवा समान पेशे से जुड़े हैं. मैंने तो कभी अपनी जानकारी से बाहर की बातों पर चर्चा नहीं की फिर मैं अक्सर देखता हूँ कि चंद कमरों तक सीमित रहनेवाले लोग, जिनका समाज से जुड़ाव भी होता होगा तो संभवतः केवल इंटरनेट अथवा सोशल मीडिया के माध्यम से ही और वो भी समाज के उपरी तबकों तक ही, पूरे बिहार में चल रहे बदलाव की बयार का ऐसे बखान करते हैं जैसे उन्होंने इसका सर्वे किया है. नितीश जी से अथवा राजग सरकार से मुझे कोई एलर्जी नहीं है, पर मैं बातों को उसके वास्तविक परिप्रेक्ष्य में देखता हूँ. 
आप प्रतिदिन राज्य में किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान खरीद की बात सुन रहे हैं समाचारों में पढ़ रहे हैं, लग रहा होगा भाई सरकार तो बड़ा सजग है. और मैं जानता हूँ सारी बातें बेमतलब की हैं बस समाचारपत्रों की सुर्खियाँ हैं. राज्य सरकार की गलत खरीद नीति के कारण न तो किसानों से ही धान की खरीद हो पा रही है, राईस मिल (जो संभवतः वर्तमान बिहार में एकमात्र उद्योग है जिसे काफी आगे बढ़ाया जा सकता है) अत्यंत घाटे का उद्योग बनते जा रहा है और सहकारी समितियां/पैक्स भी नकारा साबित हो रहे हैं. कुल मिलाकर किसान का हाल बेहाल है.
आप प्रतिदिन पढ़ रहे हैं कि मुख्यमंत्री से लेकर प्रखंड स्तर तक जनता दरबार लगाए जा रहे हैं पर मैं आंकड़ों के आधार पर आपको बता रहा हूँ कि जन शिकायत निवारण की स्थिति अत्यंत खराब है, किसी को अंततः मुख्यमंत्री स्तर से आदेश जारी होने के बावजूद भी न्याय नहीं मिल रहा. लोग जनता-दरबार में जाते-जाते थक जा रहे हैं. नहीं विश्वास हो तो मुख्यमंत्री के यहाँ पड़े शिकायत और उसके निवारण की सूचना मंगाकर देख लें, आपको यही मालूम होगा कि आपकी शिकायत फलां पदाधिकारी को प्रेषित कर दी गयी है उसके निवारण की स्थिति को www.bpgrs.com पर अपलोड करना था पर, ऐसा नहीं किया जाता क्योंकि आवेदन जहाँ भेजा गया वहीँ धुल फाँकता है.
सूचना प्राप्त करने के लिए जानकारी कॉल सेंटर तथा इंटरनेट के माध्यम से व्यवस्था की गयी, पर आपका पैसा भी कटेगा और सूचना भी नहीं मिलेगी. 
सभी जिलाधिकारी, आरक्षी अधीक्षक तथा अन्य सारे वरीय पदाधिकारियों का आधिकारिक इमेल आईडी प्रकाशित किया गया, पर संवेदनहीनता का आलम यह है कि आप मेल भेजते-भेजते थक जायेंगे, पर कोई रेस्पोंस नहीं लेगा.
मनरेगा में नब्बे प्रतिशत काम फर्जी मस्टर-रोल के आधार पर कागजों पर किए गए, शिकायतों पर भी कोई सुननेवाला नहीं. ऐसे शिकायतों की एक लंबी फेहरिस्त मैंने स्वयं माननीय मुख्यमंत्री को प्रेषित की है पर वह जाँच के लिए मुख्य-सचिव के यहाँ अगस्त 2011 से ही पड़ा हुआ है.
आप राज्य के सभी अस्पतालों में घूमकर देख लें, वहाँ दवा आपूर्ति करनेवाले कंपनी का आपने कभी नाम नहीं सूना होगा, सारे घटिया दवा राज्य सरकार के अस्पतालों में आपूर्ति किए जा रहे हैं. सब भयंकर कमीशनखोरी और घोटाले का चक्कर है.
पूरे बिहार में जाली प्रमाणपत्रों के आधार पर पारा-शिक्षकों की नियुक्ति हुई है, आज तक सभी नियुक्त शिक्षकों के प्रमाणपत्रों का सत्यापन नहीं कराया जा सका है.
बीएमपी में भर्ती घोटाले की रिपोर्ट स्वयं बीएमपी के पुलिस महानिरीक्षक द्वारा सरकार को दी जाती है, पर आरोपितों पर कोई कार्रवाई न कर उक्त रिपोर्ट करनेवाले पदाधिकारी का ही स्थानांतरण कर दिया जाता है.
करोड़ों रूपए बिजली बिल नहीं जमा करनेवाले धनपशुओं का सरकार द्वारा बिजली-बिल माफ किया जाता है और छः हजार रूपए बकाया रखनेवाले गरीब को जेल में डाल दिया जाता है, क्या यह भ्रष्टाचार का जीता-जागता प्रमाण नहीं है ?
लालू जी के शासन में छूटभैये से लेकर बड़े नेता उत्पात मचाते थे, कमोवेश वही काम आज नौकरशाही कर रही है थोड़े पोलिस्ड तरीके से. आज नेताओं की कोई औकात नहीं रह गयी है.
पर मेरे फेसबुक मित्रगण इन बातों को पसंद नहीं करते, उन्हें तो बस बिहार को चमकाना है तो इसके लिए शोर्ट-कर्ट है बस जहाँ भी रहो शेखी बघारो. चूंकि उन्हें तो किसानी, खेती, मजदूरी करनी नहीं है, वातानुकूलित कमरे में बैठकर कंप्यूटर पर शाइनिंग बिहार का मैसेज लिखते रहेंगे. आप लिखिए पर वास्तविकताओं को भी जानिए बंधु, नहीं तो कहीं ना कहीं आप भी दबे-कुचले, वंचित, पीछे छूट गए लोगों के साथ अन्याय कर रहे हैं. उनकी अपनी तो क्षमता नहीं आवाज बुलंद करने की क्योंकि आपके जैसे बुद्धिजीवी उन्हें निगेटिव अप्रोच वाला कहकर सोशल साईट्स से भी खदेड़ देंगे.
मैं भी सुशासन चाहता हूँ पर बहरा, अंधा और गूंगा होकर नहीं, जहाँ कमियां रहेंगी मैं उसे देखूंगा-सुनूंगा और बोलूंगा भी. मेरा उद्देश्य इन बातों की ओर संबंधित संवेदनशील लोगों का ध्यान आकृष्ट कराना मात्र रहता है, लगता है कोई तो होगा जिससे उम्मीद की जा सकती है. यही वजह है कि मैं अपनी बातों को फेसबुक पर विभिन्न ग्रुपों में लिखते रहता हूँ.

मंगलवार, 10 जनवरी 2012

मांगी सूचना मिली मौत, मुश्किल में आरटीआइ कार्यकर्ता

सच को सामने लाना आसान काम नहीं है. यह आग का दरिया है, जिसमें डूब कर जाना होता है. ऐसा ही सूचना का अधिकार (आरटीआइ) कानून के तहत सच को सामने लाने वालों के बारे में भी है. इन दिनों बिहार में सूचना मांगना काफी महंगा पड़ रहा है. आरटीआइ कार्यकर्ताओं को उनकी कोशिशों के एवज में झूठे मामलों का सामना या फिर अपनी जान से ही हाथ धोना पड़ रहा है.
लखीसराय के रामविलास सिंह की 8 दिसंबर को हुई हत्या, इसी तरह के माहौल की ओर इशारा करती है. वे सच को सामने लाना चाहते थे. उन्होंने आरटीआइ को हथियार बनाया. कुछ लोगों को यह पसंद नहीं था. वे राकेश सिंह उर्फ बमबम सिंह को हत्या के मामलों में गिरफ्तार न किए जाने की सूचना पुलिस अधिकारियों से चाहते थे. उन्होंने पुलिस अधिकारी की संपति का ब्यौरा भी मांगा था.
रामविलास ने पंचायत चुनाव में मिल रही धमकियों से जान को खतरा होने की आशंका जताई थी और राज्‍य मानवाधिकार आयोग समेत दर्जनों इकाइयों से शिकायत भी की थी. लेकिन उनकी पूरी कवायद बेनतीजा रही. रामविलास के बेटे अभिषेक कुमार बताते हैं, ''पुलिस महकमा चाहता तो पिताजी की जान बच सकती थी. पुलिस ने न तो आरटीआइ आवेदनों पर अपराधी को गिरफ्तार किया और न ही सुरक्षा दिलवाई.'' अभिषेक की शिकायत पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने लखीसराय के एसपी चौरसिया चंद्रशेखर आजाद से जवाब तलब किया है.
ऐसा ही कुछ बेगूसराय के बरौनी के शशिधर पांडे उर्फ खबरीलाल के साथ भी हुआ था. वे स्क्रैप माफिया और पुलिस के गठजोड़ को सबके सामने लाना चाहते थे. लेकिन 14 फरवरी, 2010 को उनकी हत्या कर दी गई थी. राजगीर के रामविलास कुछ खुशकिस्मत रहे. उनकी मुश्किलें उस समय शुरू 'ईं जब उन्होंने एसडीओ से नरेगा की जानकारी मांगी. उनके घर के दरवाजे में बिजली का करंट छोड़ दिया गया. बात नहीं बनी तो दो बार कुएं में जहरीली दवाइयां डालकर जान से मारने की कोशिश की गई. रामविलास बताते हैं, ''तत्कालीन एसडीओ के खिलाफ शिकायत करने पर राहत मिली.'' तत्कालीन राज्‍य सूचना आयुक्त शशांक कुमार सिंह ने एसडीओ कुलदीप नारायण को गैर-जिम्मेदार करार देते हुए जुर्माना और विभागीय कार्रवाई का आदेश दिया था.
आरटीआइ के जरिए सचाई सामने लाने वाले की सुरक्षा के बारे में पूछे जाने पर बिहार के पुलिस महानिदेशक अभयानंद कहते हैं, ''आरटीआइ कार्यकर्ताओं को सुरक्षा प्रदान करने के लिए संवैधानिक रूप से अलग से प्रावधान नहीं है. सुरक्षा की मांग करने वालों की अर्जियां जिला सुरक्षा समिति को सौंप दी जाती हैं, जहां से आवेदकों को खतरे की प्रकृति की गंभीरता के हिसाब से सुरक्षा मुहैया कराई जाती है.''
ऐसे मामलों की कोई कमी नहीं है, जहां आरटीआइ का सहारा लेने वालों को बेवजह ही परेशान किया गया है. खरीदीविगहा की मनोरमा देवी जब आंगनबाड़ी सेविका के पद पर नहीं चुनी गईं तो उन्होंने आरटीआइ को हथियार बनाया. करीब ढाई साल बाद ग्राम सभा आयोजित कर उन्हें सेविका के रूप में चुन लिया गया. इसकी कीमत मनोरमा और उनके पति को नवादा जेल में 14 दिन तक सजा काटकर चुकानी पड़ी. आरटीआइ के जरिए आई सचाई से जिस सुष्मिता नाम की महिला को सेविका पद छोड़ना पड़ा था, उसने मनोरमा और उसके पति गणेश चौहान के खिलाफ नगर थाने में मारपीट का आरोप लगाकर एफआइआर दर्ज करा दी.
मजेदार यह कि मनोरमा इस नाम से किसी महिला के अस्तित्व से ही इनकार करती हैं. वे कहती हैं, ''असल में गांव की नीलम के पास मैट्रिक के दो सर्टिफिकेट हैं. एक सर्टिफिकेट के आधार पर नीलम खुद राशन की दुकान चला रही है जबकि सुष्मिता नाम के दूसरे सर्टिफिकेट से अपनी देवरानी कांति को सेविका का पद दिला रखा था.'' उन्होंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से सुष्मिता नाम की महिला का पता लगाने के लिए आवेदन किया है.
अब सारण के मकव्र पंचायत के वीरेंद्र कुमार साह को ही लें. उन्होंने मुखिया से शिक्षक नियोजन से जुड़ी जानकारी मांगी थी. दोनों पैर से विकलांग वीरेंद्र को सूचनाएं तो नहीं मिलीं, उल्टा इसी दौरान चुनावी रंजिश में हुई मुखिया की हत्या का उसे अभियुक्त बना दिया गया. संयोग अच्छा था कि वीरेंद्र के साथ न्याय हुआ, वह आरोप मुक्त हुआ. सूचना न देने के और भी कई तरीके सामने आ रहे हैं.
भोजपुर के कवि तिवारी ने पंचायत समिति से योजनाओं की जानकारी मांगी तो उन्हें उसी कागजात को छीनने का आरोपी बना दिया गया, जिसकी सूचना मांगी गई थी. नागरिक अधिकार मंच के अध्यक्ष शिवप्रकाश राय बताते हैं, ''आरटीआइ देश के करोड़ों लोगों का सशक्त हथियार है, जो भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में अहम भूमिका निभा रहा है. लेकिन आवेदकों पर चौतरफा हमले से स्थिति नाजुक हो गई है.''
बिहार राज्‍य सूचना आयोग के मुख्य सूचना आयुक्त अशोक कुमार चौधरी कहते हैं, ''सूचना उपलब्ध कराने में बिहार देश में अव्वल है. हर माह करीब 1,500 आवेदन आते हैं. करीब 60,000 से अधिक आवेदनों में से मुश्किल से 4,000 लंबित हैं.'' वे बताते हैं कि ज्‍यादातर सचिवालय स्तर से सूचनाएं उपलब्ध करा दी जाती हैं. चाहे जो हो आरटीआइ को कुंद करने वालों का दबदबा कायम है. इस माहौल में आवेदकों का साजिशों से बचना चुनौती बनता जा रहा है.

ह्विसिल ब्लोअर की हत्या की जांच करेगा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग

Jan 09, 09:03 pm

पटना, जागरण ब्यूरो
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग पिछले माह लखीसराय में एक आरटीआइ एक्टिविस्ट रामविलास सिंह की हत्या की जांच करेगा। आयोग ने मामले का संज्ञान लेते हुई इसकी सूचना सोमवार को सामाजिक संस्था नागरिक अधिकार मंच को दी है। श्री सिंह, 'ह्विसिल ब्लोअर' की भूमिका में थे। इस भूमिका में व्यक्ति भ्रष्टाचार के किसी मामले को उठाता है, संबंधित जांच को मुकाम देने की ईमानदार कोशिश में रहता है।
बहरहाल, नागरिक अधिकार मंच ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के समक्ष शिकायत दर्ज कर जांच की मांग की थी। शिकायत में कहा गया था कि रामविलास सिंह ने राज्य मानवाधिकार आयोग सहित समस्त आला अधिकारियों को अपनी जान पर खतरे की सूचना दी थी। साथ ही धमकी देने वालों के नाम भी बताए थे। इस हत्या के खिलाफ मंच ने राजधानी पटना में 19 दिसंबर को धरना भी दिया था। मंच ने राष्ट्रीय मानवाधिकार से यह भी कहा था के मृतक के परिजनों की जान पर भी खतरा बना हुआ है।

माँगी सूचना मिली मौत

माँगी सूचना मिली मौत, इंडिया टूडे ११ जनवरी २०१२