सोमवार, 4 अप्रैल 2011

किसानों के हक के लिए लड़ता एक किसान

बक्सर। सरकारी गतिविधियों के बारे में जानना हमारा बुनियादी हक़ है। लेकिन आम आदमी अगर इस हक का इस्तेमाल करना चाहें तो व्यवस्था उसकी हिम्मत तोड़ने की पुरजोर कोशिश करती है। सिटीज़न जर्नलिस्ट शिव प्रकाश के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ लेकिन उनकी हिम्मत ने एक नई मिसाल कायम कर दी।
शिव प्रकाश राय पेशे से एक किसान हैं। वो बिहार के बक्सर जिले के रहने वाले हैं। प्रधानमंत्री रोजगार योजना के तहत किसानों के लिये जो पैसा आता है वो सरकारी बैंकों के जरिए उनमें बांटा जाता है। शिव प्रकाश ने देखा कि ये किसानों की जरूरत के लिए आने वाला पैसा सही तरीके से नहीं बंट रहा था। फिर उन्होंने सूचना के अधिकार का इस्तेमाल कर ये ब्यौरा मांगना चाहा कि किसानों के लिये प्रधानमंत्री रोजगार के तहत कितना रुपया आता है।
बिहार के बक्सर जिले में गांववालों की इतनी ज़मीन है कि प्रधानमंत्री रोज़गार योजना के तहत हर किसान को खेती और सिंचाई के लिए पैसा मिलना चाहिए।
शिव प्रकाश ने इस सिलसिले में सूचना आयोग से जिले के 59 बैंकों से आए हुए रुपयों की जानकारी मांगी। शिव प्रकाश से RTI के जबाव में कहा गया कि ये जानकारी उन्हें जिला अधिकारी से मिलेगी और उसके लिए उन्हें जिला तहसील में दोबारा RTI दाखिल करनी होगी। शिव प्रकाश ने कई अधिकारियों और दफ्तरों के चक्कर लगाए। लेकिन फिर भी उन्हें कोई जानकारी नहीं दी गई।
2007 में जब शिव प्रकाश अधिकारी से मिले तो जानकारियां देने के बहाने उनसे ज़बर्दस्ती एक सादे कागज पर हस्ताक्षर करवा लिए गए। जब शिव प्रकाश ने विरोध जताया तो उन पर रंगदारी और जिलाधिकारी के साथ मारपीट का आरोप लगा दिया गया और उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया।
जेल से रिहा होने के बाद शिव प्रकाश ने अपना संघर्ष जारी रखने का फैसला किया। अब उनकी लड़ाई दोहरी थी। शिव प्रकाश ने फैसला किया कि उनके साथ हुए ग़लत व्यवहार के लिए जो अधिकारी दोषी हैं वो उन्हें सजा दिलवाएंगे। इसके अलावा किसानों को मिलने वाले पैसे का ब्यौरा जानने के लिए भी शिव प्रकाश ने अपनी लड़ाई जारी रखी। अपने सवालों के जवाब पाने के लिए वो दफ्तरों और अधिकारियों सरकारी नौकरशाही के लगातार चक्कर काटते रहे। शिव प्रकाश के साथ जो हुआ वो ये दिखाता है कि नौरकशाही अपने खिलाफ लड़ने वालों को कमजोर बनाने की हर संभव कोशिश करती है।
फिर भी शिव प्रकाश ने अपनी लड़ाई जारी रखी और उनका संघर्ष रंग लाया। सूचना आयोग ने दोषी अधिकारियों के खिलाफ जांच के आदेश दिए और बहुत जल्द पाया गया कि बक्सर के जिलाधिकारी विशुन देव प्रसाद ग़लत हैं। झूठे मामले में फंसाए जाने को लेकर उनपर 25 हजार रुपए का आर्थिक दंड लगाया गया।
हालात आपको चाहे कितना भी कमज़ोर बना दे पर सच्चाई की जंग जीतने का जज्बा खुद में होना चाहिए।

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