सोमवार, 10 सितंबर 2012

आरटीआइ में मांगी सूचना, तो मिली प्रताड़ना

।। दीपक दक्ष ।।
पटना : डीएम ऑफिस से बुलावा आया. वह भागते हुए पहुंचा. सामने डीएम साहब थे. बोले, खड़े रहो. वह चुपचाप खड़ा रहा. फिर बोले, ज्यादा होशियार बनते हो? एक्टिविस्ट बनने का भूत सवार है? सब भूत एक दिन में भाग जायेगा.
तुम्हारे कारण मुझे आयोग से फटकार मिली. आखिर खुद को समझते क्या हो? फिर डीएम साहब घंटी बजाते हैं. कर्मचारी आता है. थोड़ी देर बाद पुलिस आती है. उसे पकड़ कर ले जाती है. पुलिस कहती है, पगला गये हो क्या, कल्कटरे साहब से रंगदारी मांग रहे हो. फिर 29 दिनों तक वह शख्स जेल में रहा. उसका अपराध था सूचना के अधिकार के तहत सूचना मांगना.
बाद में एसपी की जांच रिपोर्ट से भी साबित हुआ कि रंगदारी का कोई साक्ष्य नहीं मिला, गवाहों ने इसे नहीं स्वीकारा. खैर, यह तो महज एक की कहानी है. लगभग इसी तरह के कुल 101 लोगों के मामले सामने आये हैं, जिन्हें सूचना मांगने पर उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा है. ये आंकड़े महज पांच महीने के ही हैं और यह सब कुछ खुलासा हुआ है आरटीआइ के तहत मांगी गयी सूचना से.
* मानवाधिकार आयोग की पहल
2009 में राज्य मानवाधिकार आयोग में एक मामला आया. मामला था सूचना मांगने पर उत्पीड़न का. आयोग ने सरकार से कहा कि 54 मामले आये हैं, जिनमें वैसे लोगों को फंसाया गया है, जो सूचना मांग रहे थे.
आयोग ने मुख्य सचिव को पत्र लिखा कि झूठे मुकदमे करनेवाले अधिकारियों को दंडित किया जाये. ऐसे अधिकारियों में एसपी से लेकर डीएम तक हैं. यह बात जान कर सरकार के कान खड़े हो गये. आनन-फानन में एक हेल्पलाइन ( 0612-2219435) जारी की गयी. कहा गया कि इससे गृह सचिव और डीजीपी सीधे जुड़े रहेंगे.
* आरटीआइ एक्टिविस्ट ने मांगी सूचना
अब सूबे के जाने-माने आरटीआइ एक्टिविस्ट और नागरिक अधिकार मंच के प्रदेश अध्यक्ष शिव प्रकाश राय ने आठ मई, 2012 को सामान्य प्रशासन विभाग से सूचना मांगी कि इस हेल्पलाइन के जरिये अब तक कितने मामले सामने आये हैं? इनमें क्या कार्रवाई हुई है? सामान्य प्रशासन विभाग ने गृह विभाग और बेलट्रॉन( हेल्पलाइन संचालक) को पत्र लिखा.
उन्होंने बारी-बारी से सूचना उपलब्ध करायी. गृह विभाग के अवर सचिव रवि शंकर कुमार सिन्हा ने 11 जून, 2012 को सूचना दी कि 2011 में 26 और 2012 में अब तक 11 मामले सामने आये हैं यानी कुल 37 मामले सूचना मांगने पर उत्पीड़न से संबंधित हैं. बेलट्रॉन के लोक सूचना पदाधिकारी विनोद कुमार ने 28 अगस्त को सूचना दी कि कुल 30 मामले सामने आये हैं. फिर राज्य सूचना आयोग ने सूचना दी कि 15 मार्च से 12 अगस्त, 2012 तक हमारे पास 101 लोगों ने सूचना मांगने पर उत्पीड़न की शिकायत शपथपत्र के साथ दर्ज करायी है.
* नाम के साथ शिकायत
2009 में ही मानवाधिकार आयोग ने 54 अधिकारियों को दंडित करने का आदेश दिया था. लेकिन, कितने लोगों को दंडित किया गया, आज तक इसका पता नहीं चला. अब एक बार फिर राज्य सूचना आयोग ने 101 मामले को सामने रखा है.
जैसे पश्चिमी चंपारण के शरद कुमार ने लोक सूचना पदाधिकारी सह कृषि पदाधिकारी पर, विक्रम के रामविलास प्रसाद ने चिकित्सा पदाधिकारी पर, वैशाली के अजीत कुमार ने जिला शिक्षा पदाधिकारी पर और धनरूआ, पटना के नागेश्वर साह ने सीडीपीओ पर उत्पीड़न का मामला राज्य सूचना आयोग में दर्ज कराया है.
* सूचना मांगने पर मिली मौत
* रामविलास की मौत
लखीसराय के बभन गांवा के रामविलास सिंह ने पुलिस विभाग, कृषि विभाग व प्रखंड के कथित भ्रष्टाचार को सामने लाने के लिए आरटीआइ के तहत आवेदन दिया. उन्हें धमकी मिलने लगी. उन्होंने गृह सचिव, डीजीपी, एसपी सहित 19 जगह पत्र लिखे. इनमें साफ -साफ लिखा था कि अमूक-अमूक अधिकारी मेरी हत्या करवा सकते हैं. लेकिन, किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया और आखिर में 11 दिसंबर, 2011 को उनकी हत्या हो गयी.
* 72 वर्षीय वृद्ध को मारा
मुंगेर के हवेली खड़गपुर के 72 वर्षीय डॉ मुरली मनोहर जायसवाल आरटीआइ के जरिये ब्लॉक में चल रहे भ्रष्टाचार को सामने लाना चाह रहे थे. उन्हें बार -बार धमकी मिल रही थी, लेकिन वह नहीं माने और चार मार्च, 2012 को उनकी भी हत्या हो गयी.
* खबरची लाल की मौत
बेगूसराय के फुलवरिया के शशिधर मिश्र को लोग खबरची लाल कहते थे. उनके पास हर किसी कि खबर रहती थी. वह लगातार आरटीआइ का प्रयोग कर रहे थे. 2009 में वह स्क्रैप माफिया और पुलिस की गंठजोड़ को उजागर करने में लगे थे. सूचना के लिए आवेदन दिया था, तभी उनकी भी हत्या हो गयी.
* 101 लोगों ने सूचना मांगने पर उत्पीड़न करने का आरोप लगाया
* आरटीआइ के तहत मामले का खुलासा
- सीएम के आदेश के बाद आयोग लगातार ऐसे मामलों की मॉनीटरिंग कर रहा है. शिकायत आने पर आयोग प्रधान सचिव, गृह सचिव व डीजीपी को पत्र लिख कर इस पर नियंत्रण के लिए कहता है. हम चाहते हैं कि सूचना मिले, उत्पीड़न न हो.
फरजंद अहमद, राज्य सूचना आयुक्त
- राज्य सूचना आयोग उदासीन है. अगर आयोग अधिकारियों को दंडित करता, तो इस पर लगाम लगती. सिर्फ पत्र लिखने से कुछ नहीं होगा.
शिव प्रकाश राय, आरटीआइ एक्टिविस्ट

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